शनिवार, 21 अगस्त 2010

सिसकता शहर



हमारा शहर संसार का सबसे प्राचीन शहर है ,या उन शहरों में सामिल है ,सबसे ज्यादा मंदिरों वाला शहर ,धर्मनगरी यहाँ ही आज़ादी का असली मतलब सही मायने में समझा जा सकता है और कोई हमारी आज़ादी छीन भी नहीं सकता ३-४ मीटर की सड़को पर ७ मीटर की गाड़िया चलती है अम्बुलंस और अग्नि समन की गाड़िया खड़े -खड़े सायरन बजाते -बजाते रिज़र्व में आ जाती है ,जाम ऐसा की लंका के सेतु की तरह बन्दर ऊपर ही कूदी मारते हुए अपने लक्ष्य को चला जाता है ,उसे कीचड ,उबड़ खाबड़ ,पत्थर ,पानी भरे ,जलती ,कंकडिली सड़क पर जाने से राहत मिल जाती है ,कुछ दुकानदार ऐसे दूकान खोलते है ,मानो सड़क से ही ग्राहक उठा लेगे ,खडी अम्बुलंस में बच्चा चकपका -चकपका सोचता होगा ये सायरन और भीड़ से लगता है , की पृथ्वी वासीयो का हैप्पी बर्थ डे मनाने का कोई तरीका है ,


गलियों में न जाने कब जर्जर भवन का पत्थर गिर जाये ,या ऊपर से कोई कूड़ा या पानी ही न टपक जाये ,जर्जर तार कभी भी काल बन सकते है ,सीवर ऊपर से बहने की कसम खा चुके है , मोक्ष नगरी में लकडिया पानी से भीगी रहती है ,वजन ज्यादा होगा ,बनारसी ठग मसहूर है , चोर कटो की भर मार है ,पलक झपकते ही लूट लेते है ,
एक एक तीन पहिया ,रिक्शे ,ऑटो ,कई बस में तो इतने बच्चे ठुसे रहते है ,की खूझा भी न सके ,
यहाँ मिनटों में रेडी मेड विजली प्राप्त की जा सकती है , कुछ नहीं बस यहाँ वहा बांस खड़ा किया और काम पूरा ,कुछ लोग के फ़ोन के तार भी बीच से फ़ोन जोड़कर किये जा सकते है ,बिल बदमास नहीं बकायेदार भरेगे ,
उडती धुल ,कड़कती धुप ,कीचड़ ,पानी ,फैले कूड़े ,दौड़ते सुअर , ,गुटखा , पान की रंगत ,आवारा कुत्ते ,आदि इसमें चार चाँद लगाते है ,और प्रेम से साथ निभाते है ,
हम सभी आज़ाद है और आज़ाद आजादी नहीं छिनते ,ये हमारे सड़क ,पार्क ,आदि के साथी है ,
सड़को पर बस घुसते जावो मानो आगे खैरात बट रही हो ,रही बात व्यवस्था और सजगता की तो वह काम प्रसाशन का है ,हम तो सड़क पर बपौती के लिए ही निकलते है ,और गाड़ी बंद कर खूब पेट्रोल बचाते है ,
सड़क और शहर के लिए .....
शहर बना ज़हर ,सड़क की ज़िन्दगी बनी मौत ,
हर तरफ जाम का कहर ,थक गयी आँखों की जौत....

जनता ,सड़क ,प्रसाशन और परेसानी के लिए ...
टूटी सड़के पन-तपन से भीगते लोग ,
चलते भी है ,ऐसे जैसे जनता या सड़को को लग गया कोई रोग
कभी -कभी ऐसा लगता है ,बस सड़क पर ही लग जाये जोग ,
प्रसाशन कहता है ,तू आया सड़क पर इसलिए कुछ तू भी तो भोग

लेखक :- भींड से बचते हुए ........एम् .कॉम .२०१० विद्यापीठ ,वाराणसी ,........ये राही चल चला चल .......

शनिवार, 14 अगस्त 2010

फिर आया ये रास्ट्रीय पर्व आज़ादी का





हमारा देश एक ६४ साल का बुढ़ा देश हो गया है ,कहने को यह रास्ट्रीय पर्व है ,इशलिए विदयाल्वो ,स्कूलों , में मिठाई मिलती है समोसा मिलता है , बच्चे कार्यक्रम करते है ,उन्हें सिर्फ इन्ही सब में खुसी मिल जाती है ,लगभग सभी बच्चे आज़ादी के सही मायने नहीं जानते ,इनाम मिलेगा ,मिठाई मिलेगी ,,ये होगा ,वो होगा ,

टी.वि। पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ,सीना तानेगे ये किया वो किया , तोप ,मिस्साइल , दिखाई जाएगी ,ये होगा वो होगा आदि आदि , सन्देश कही कही नहीं पहुचेगा ,बिजली के अभाव में ,

लेकिन मुझे जो विविधता में एकता दिखती है ,उशी में रोमांच और संतोष मिल जाता है ,

३५ राज्य ,विश्व के लगभग सभी धर्म ,११४ भाषा ,२१६ उप सहयोगी भाषा ,सभी मौसम ,सभ्यता ,संस्कृति ,यही गर्व भी है ,और सर्म भी क्यों की केवल जाति पर ही भेदभाव प्रारंभ हो जाता है ,

इसआज़ादी पर किस राज्य को देश का सबसे प्रगति शील ,या प्रगति प्राप्त राज्य का भारत मणि जो माणिक से बना है ,सम्मान मिलेगा ,पहला ,दूसरा ,तीसरा ,पुरस्कार किशे मिलेगा ,उनके लिए केंद्रीय कोष की वर्षा होगी ,ये किसी को नहीं पता , सी.ऍम। और पी.ऍम। को प्रतिदिन ,४ घंटे देश के विकाश के लिए सभा करनी चाहिए ,

सच कहे तो आज़ादी का मतलब हमें स्वयं नहीं पता ,धूम धड़ाका,नाच ,गाने ,फिर वही दूसरी सुबह ,और यहाँ वहा

बिखरे तिरंगे ,

सच मायने में आज़ादी का अर्थ है क्रांति ,परिवर्तन ,हवा का झोका ,लहर जिससे पूरा देश लहराते तिरंगे की तरह प्रभावित हो .पहला रंग संतरी या केशरिया इनको छीलो या घोलो तब आज़ादी के मायने समझ में आयेगे ,मै रंगों पर नहीं बोलूगा क्यों की यह ध्वज सम्मान और ज्ञान से बढ़कर है ,

एक एक बच्चा भारत है ,हम जो भी हो लेकिन हमारी औकात एक भारतीय से ज्यादा कुछ नहीं है ,और कम तर छोड़ो ...........

इतिहास साबित करता है ,अंग्रेज विद्वान थे ,ईस्ट इंडिया कंपनी १६०० से कार्य कर रही थी और है .....उन्हें मजदूर चाहिए थे और हमें आज़ादी ,इंडिया गेट पर शहीद नाम ,हो या प्रथम ,और दुसरे विश्व युद्ध में शहीद भारतीय ,या नेता जी के साथ भारतीय ,कुछ देश भक्तो ने सब कुछ धन ,सुख ,नीद ,चैन ,परिवार को छोड़ केवल आज़ादी और मौत को चुना ,सायद वो अब सरीर से हमारे साथ नहीं है ,जिनकी आज सख्त जरुरत है ,

उपनिवेशी साबित क्या करना कहते थे ,अंग्रेज जाते जाते रेल ,सड़क,बिजली ,पानी,आदि का तोहफा दे गए ,

धन सम्पदा ले गए ,और अत्याचार से आनंद भी ले गए ,और पीछे एक गरीब देश के साथ पकिस्तान का भी बटवारा कर गए ,वो साबित क्या करना चाहते थे ? आज भी हमें हमसे ज्यादा हम नहीं वो अंग्रेज जानते है ,सायद कहते हो जिन्हें होना चाहिए ,,वो नहीं रहे .....या कुछ और ...

हमें स्वयं पर निर्भर होना होगा ,कोई आपको सांसे उधार दे सकता है ,रक्त भी दे सकता है ,पर दिल की धड़कन और प्राण तो नहीं दे सकता न ...........

देश प्रेम दिल और रक्त में बसता है ,..........जो धडके और प्रवाहित हो .............

इतिहास हमें सिखाता है ,विकशित वही है ,जो भविष्य देखता है ,आज भी हम आज़ादी का सच्चा अर्थ नहीं समझेगे क्यों की हमारे पास दिल ,दिमाग ,खून ,है तो अपने नाम ,पैसे ,इज्ज़त ,सोहरत के लिए ,

नहीं दम है तो अग्रसारित क्यों नहीं करते , एक पौधा ही वृक्ष बनता है ..............

एक सायर की पुरानी सायरी ..........शहीदों की चितावो पर लगेगे हर बरस मेले -वतन पर मर मिटने वालो का बाकि यही निशा होगा

भूत और वर्तमान के लिए ।

हे भारत के भक्ति आराधक ,

विकशित देश के तुम हो साधक

देश भक्तो के लहू का मान रहे ,

विश्व भर में भारत का सम्मान रहे .........................

प्रेषक ...... ऍम .कॉम। २०१० ....विद्या पीठ वाराणसी .....पैन नेवर एंड्स ....दर्द कभी समाप्प्त नहीं होता