बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

स्टेफेन हवकिंग और मेरा विचार




































नोट ;- मेरे दुश्मन ,गंदे विचारधारा वाले कृपया मेरे ब्लॉग साईट पर न आवे ,उनका बुरा हो ,नास हो ,उनकी आँखे फूट जाये ,मेरे लेखो को कापी कर भारत से बाहर न ले जाये ...कुछ भारतीय भी गद्दार होते है ....
स्टेफेन हवकिंग दुनिया के जाने माने भौतिक विज्ञानी और खोगल विद है ,यदि इन्हें दुसरे आइन्स्टीन कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी ,निर्विरोध महान है ,नासा उन्हें पूरी सहायता देता है ,भविष्य में क्या होगा ,और होने वाले सम्भावानावो को भी तलासते है , इनका सारा सरीर विकलांग है , मशीनो की सहायता से विचार व्यक्त करते है ,हाल ही में इन्होने कहा की सृस्ती की रचना भगवान् ने नहीं विज्ञानं ने कीया है ,बिग बेंग से संसार की ब्रह्माण्ड की रचना हुई ,दिस्कोवेरी पर उनका आने वाला १.३० घंटे की विचारो की पूरी डाकुमेंट्री हो या इस चैनल पर आने वाला प्रोग्राम सैंस फ्रोंटेअर हो ...उनका नास्तिक होना भी उनके प्रबल वैज्ञानिक होने का प्रमाड है .....
उनका नास्तिक होना भी बेबुनियाद नहीं है ,क्यों की इश्वर ने उन्हें बीमारी दी तो बिज्ञान ने साहारा मानो वो ईश्वर को दोष दे रहो हो ,पर जो हमारे समझ में न आये वो ईश्वर और जो समझ में आ जाये वो बिज्ञान ,परन्तु ये भी हो सकता है आज वो आम आदमी की तरह स्वस्थ होते तो सायद मशहूर बैज्ञानिक न होते ,
जो भी हो हमें ईश्वर से सिकायत ज़रूर रखना चाहिए ,पर अविश्वास नहीं ,क्यों की ये मानव सरीर ,ये पक्षी ,पशु ,हवा ,पानी ,गुरुत्वा आकर्सन ,घुमती धरती ,चाँद सितारे ,सूर्य ,पेड़ -पौधे , चाहे जैसे उत्पन हुए हो ,पर इनका मकसद भी तो कुछ होगा ही न ...????????? फिर एक बार
जो समझ में आये वो विज्ञानं और जो समझ में न आये वो पराविज्ञान व ईश्वरीय चमत्कार कह सकते है ,,
चाहे जो भी हो पर जिन्हें हम हम इश्वर कहते है ,वो दुसरे ग्रहवासी हो सकते है ,या फिर हमारा सन्देश बुरे पर -ग्राहियो को मिले तो हमारी सभ्यता को ख़तरा हो सकता है ,बसरते हमारी तकनीक उन्हें न मिले ,और उनकी भी कोई विज्ञान और तकनीक हो सकती है ,,, जाते जाते सबसे सम्ब्रिध ग्रह हमारा पृथ्वी है ,क्यों ?
क्यों की यहाँ सब कुछ है ,हा सब कुछ है ,इसलिए सबसे समब्रिध ग्रह है ,यहाँ एक दिन होता है ,एक रात ,इसलिए इसके जैसा दूसरा ग्रह नहीं है ,यहाँ उ .और दक्षिणी ध्रुव पर जल को भी बर्फ के रूप में रिसर्व करके रखा गया है ,इशलिये हमारे पृथ्वी को बहुत सोच समझ कर बसाया गया है ,और हम सभी जानते है ,रिसर्व का प्रयोग कब होता है ,विशेस परिस्थिति में या गंभीर स्थिति में ,और दुसरे ग्रह होगे तो भी इसके सामान नहीं ,यदि आप देवता के ग्रह जाये या अन्य किसी पर तब भी पृथ्वी जितना ज्ञान नहीं मिलेगा ,
मै ने भी बिज्ञान पर उल्टा सीधा एक लेख लिख रखा है ....जाते जाते यही की बहुत विकशित सभ्यता अपना विनाश स्वयं कर लेती है ....यह भी हो सकता है .की विकाश चक्र से गुजर कर अन्य जीव ,बन्दर ,भालू ,गोरिल्ला ,कुत्ते ,हम मनुष्यों के लिए ही खतरा बन जाये ,जैसा की फिल्म एप प्लेनेट ,डीपब्लू सी ,और अवतार में दिखया गया है ,.....
हा ..स्टेफेन हवकिंग के जीवन को कुछ हद तक दरसाने वाली एक बॉलीवुड की फिल्म गुजारिश आ रही है ,अगले महीने ज़रूर देख सकते है ....
स्टेफेन हवकिंग ,प्यार ,साथी ,संघर्ष और तड़प के लिए ....
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से साहारा है ,कही बंदिसो का बंदिसो से किनारा है ,
कही कोई प्यार के लिए प्यार से भी प्यारा है ,सवाल यही एक दिल ने धड़कते हुए दिल को पुकारा है .....
हिन्दू धर्म में ५ प्रकार के ज्ञान ,ऋण ,और यज्ञ है ।
१, ब्रम्ह २ , देव ३, पित्र ४ , भूत (स्वयं के ) ५, अतिथि (प्रिय ,कृपालु )
जाते जाते यही की ,
बदलाव परिवर्तन के लिए न होकर समय रोकने के लिए हो ,जैसे बसंत और आविष्कार ........................................
लेखक ;- मिलने के इच्छुक eम .कॉम । माँ .गा। का .वि। वाराणसी ...
मेरा -इ .मेल तिरंगा ७ @जी मेल
मोब। न। ;-८८९६१७९६१४ भारत

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

रास्ट्र मंडल खेल (कामन वेल्थ गेम )



























अभी -अभी हमारे देश में रास्ट्र मंडल खेलो का आयोजन संपन्न हुआ ,या ये कहे की इसे हमारे देश में आयोजित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ , इसके जरिये यदि हम कुछ दिखा सकते थे ,तो अपनी और अपने देश की छवि ७३ देश ,एक मंच और २७२ प्रतिस्पर्धा

इस खेल में ऑस्ट्रेलिया एक बार फिर खेल महाशक्ति बनकर उभरा ,इसमें उनकी तकनीक ,महंगे उपकरण , उनका परिक्षण ,प्रशिक्षण ,और रणनीति अहम् हो सकते है , चाहे जो हो कोई भी पहला ,दूसरा ,तीसरा रहा हो ,पर सबसे ज्यादा कोई बात मायने रखती है , तो वो है ,सोने का दिल जो दुसरे दिल को भी सोना बना दे ,एक मित्रता का आग्रह ....खेल में ही कोई ऑस्ट्रेलिया का खिलाडी बोला " दे are respecting वैरी मच '
सुनकर बहुत अच्छा लगा ....
प्रारंभ में इस आयोजन पर तरह तरह की अब्यवस्था की बात होती रही पर कुछ जगह पैसो की कोई अहमियत नहीं देखि जाती ,ईमानदारी अनमोल है और अच्छाई अपनी जगह अतुल्य ये जो पारस के समान है ,और आज के समय में पारस अत्यंत दुर्लभ है ,मिलता ही नहीं ,
समापन समारोह में लेसर किरण ,गीत संगीत ,सांस्कृतिक कार्यक्रम अच्छे थे ,बन्दे मातरम गीत ,अच्छा लगा , पर कही -कही एषा लगा जैसे पैसे में से पैसा बचाया जा रहा हो , सायद इसी वजह से अन्य मीडिया को दूर रखा गया ,१० रूपये को प्रबंध के नाम पर २० रूपये का भी बताया जा सकता है , और जो महंगे खेल उपकरण बच गए है ,उनका क्या होगा नहीं पता , एक मुहावरा भी है , खेल खतम ,पैसा हजम ............
यदि हम अपने मेहमानों के चेहरे पर खुशी, चमक ,और मुस्कान ला सकने में सक्षम हुए है ,तो हमारा सारा श्रम ,ब्यय,और प्रबंध सफल होते है ,क्यों की हमारे देश में सदैव से अतिथि देवो भवः का सिद्धांत रहा है ,
ये आयोजन कितना सफल है ,ये तो हमारे मेहमान ही बता सकते थे ,
अब हमें यह नहीं पता की ये खेल आयोजन हमारे देश में फिर कब होगा ,पर २०१४ के खेल में हम भारतीय फिर यही उपलब्धि हासिल करने स्कॉट्लैंड जरुर जायेगे ......मेरी शुभकामनाये
और आशा है अगले माह चीन के एशिया ई खेल में इसे कायम रखेगे ,एक बार फिर से शुभकामनाये .....
लेखक :-उत्साह वर्धन और ताली बजाते हुए ......२०१० ....




शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

महात्मा मोहन दास करम चन्द गाँधी के वचन और सीख













महात्मा गाँधी जी का जन्म २ अक्टूबर १८६९ में गुजरात के संब्रिध घराने में हुआ , माता का नाम पुतली बाई और पिता करमचंद गाँधी थे , देश में परतंत्रता के कारन और उच्च शिक्षा के आभाव में १८९३ में द अफ्रीका जाकर वकालत की उची शिक्षा ग्रहण किया , तथा वहा के भारतीय शोषितों के हक़ की लड़ाई लड़ी .....
एक बार गाँधी जी द , अफ्रीका में रेल से यात्रा कर रहे थे ,तो रंगभेद , ओछी मानसिकता और भारतीय होने की हेय
दृष्टी से एक रेल अधिकारी ने उन्हें प्रथम डिब्बे से सामान सहित बाहर फेक दिया ...
परन्तु अपने देश में जो प्यार ,हवा ,जल ,मिला उसकी कमी उन्हें प्रत्येक जगह महसूस हुई ,यही वजह उन्हें देश का स्वतंत्रता सिपाही बनने पर मजबूर कर दिया ,परन्तु उनका रास्ता सबसे अलग था ,विश्व के वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शांति और अहिंसा से अपने देश को आज़ाद करवा दिया ,वो आज़ादी के पहले व्यक्ति है ,जिनके नाम में महात्मा जुड़ा है ,जिसे रास्ट्र गीत रचयिता कवी रविन्द्र नाथ taigor ,ने दिया ,गाँधी जी के तीन बन्दर ,का सन्देश ,बुरा न कहो ,बुरा न सुनो ,बुरा न देखो ,सदियों तक परम सन्देश बना रहेगा ,
जो हिन्दू धर्म के मन ,वचन ,और कर्म के पापो को रोकता है , निंदा न करो ,कटु न बोलो ,बुरे वचन से बचो ,...
उन्होंने दबे कुचले शोषित लोगो को मर्यादा पुरसोत्तम राम की उपाधि दी ,उन्हें हरिजन अर्थात भगवान का पुत्र कहा , भारत की गरीबी देखकर उन्होंने भी गरीबी का पालन किया ,उन्होंने कहा स्वयं के लिए कार्य करो ,आत्म निर्भर रहो ,उन्होंने देश को एक सूत्र में रखा ,देश में कमजोर लोगो की रक्षा की ,देश के पालक की तरह रक्षा की अपना कर्तव्य निभाया इसलिए उन्हें रास्ट्र पिता की पदवी मिली नेता जी बोस ने उन्हें रास्ट्र पिता कहा ...
जिसकी गवाह भारतीय मुद्राए है ,उनकी महानता पर भी उन्हे स्वेदिश अकादेमी द्वारा मिलने वाला नोवेल पुरस्कार नहीं मिला ,क्यों की वो एक भारतीय थे और केवल भारतीयों लिए कार्य किया ,
उनका प्रत्येक समय घडी रखना सिखाता है ,समय की कीमत पहचानो ,सायद इसी लिए उन्हें अपनी ख़राब लिखावट का उम्र भर अफ़सोस रहा ,
उनका सूत काटना ,स्वयं खाना बनाना ,बकरी पालना सिखाता है ,स्व निर्भर बनो , कर्म करो ,खाली न रहो> ॥

उनका साबर मति आश्रम में जीवन हमें सरलता ,और बिलासता रहित जीवन का सन्देश देता है ,उन्होंने गलत नियमो के विरोध में अपना शांति नियम बनाया जिसे आज तक कोई गलत नहीं कह सका ...उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अनेक आन्दोलन किये जो आज भी कारगार है ...उन्होंने तमाम महान विचार भी दिए ...

एक गीत भी है .....दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल ...साबर मति के संत तुने कर दिया कमाल ......................
१९१४-१५ में गाँधी जी द अफ्रीका से भारत आये ,यहाँ भी उन्होंने अंग्रेजो के अत्याचार और जनता के हक़ की लड़ाई लड़ी ....
प्रस्तुत है उनके सिद्धांत और सीख ...
सत्य -अहिंसा :-सत्य सर्वोच्च कानून है ,और अहिंसा सर्वोच्च कर्त्तव्य ,गाँधी जी अहिंसा कायरो का नहीं वीरो का अस्त्र बताते थे , अतः अहिंसावादी वीर होते है , परन्तु कायर न बनो ...श्रम को भी दान बना दिया श्रमदान करो ...
कायर न बनते हुए कर्म करो ...आवाज़ बुलंद करो

सत्याग्रह :-सत्य के प्रति आग्रह ,अहिंसा का पालन करते हुए बुरे व्यक्ति के गलत कार्य का प्रचार करो , उसे जनता तक लाकर उसके कार्य से डिगाना था ,न माने तो उसे हानि पहुचाये बिना , शांति हड़ताल , कार्य बहिस्कार , आदि से विरोध ॥

सविनय :- गाँधी जी का कथन है ,यदि आपसे भूल से एक चीटी भी दब जाये तो आप सविनय माफ़ी मांग लीजिये ...

स्वराज्य :-में उनका मुख्य लक्ष्य अहिंसक समाज की कल्पना ,तथा अपने हित इच्छा वो को दुसरे पर ज़बरजस्ती न थोपना था ...

न्यासिता ;- गाँधी जी कथन है ,यदि आप करोडो कमाते है .और उसे परोपकार में व्यय नहीं करते तो सभी धन व्यर्थ है ,मानव जीवन ही तुच्छ हो जायेगा ....

सर्वोदय ;- गाँधी जी ने अपने रेल यात्रा में अपने मित्र द्वारा दी पुस्तक अन टू दिस लास्ट से प्रभावित होकर यह सिद्धांत दिया की सभी राजा-रंक , काले -गोरे , हिन्दू -मुस्लिम ,उचे -नीच सभी सामान है ,इन्हें हेय दृष्टी से न देखो ,भेदभाव रहित समाज हो , क्यों की इसके ओट में शोषण होता है ,अतः सभी का सूर्य की तरह नया उदय हो और उनका तथा उनके परिवार का पोषण हो ॥


स्वदेसी और खादी;-गाँधी जी की परिकल्पना में स्वदेसी और खादी भी थी ,जो देश को मजबूती देती है ,गाँधी जी का स्वदेसी आज भी है , खादी से आशय सस्ती ,प्राकृतिक ,और रोजगार देना होता है ,पर ये स्वदेसी अपने आस्तित्व की आखिरी साँसे गिन रही है , बड़े -बड़े उद्योगों के लिए सरकार सब कुछ कर रही है ,पर स्वदेसी -खादी के लिए नयी साँसे देना ,नयी विचारधारा के अभाव में ये रुग्ण है, इसको विज्ञानं के ज्ञान ,अनुभव , परिक्षण ,और प्रयोग की आवश्यकता है .....


राजनीति ;-उन्होंने राजनीति को निस्वार्थ लोक सेवा तथा नैतिकता के स्तर पर रखा तथा इसमें तमाम बुराइयों के अतिरिक्त मानव के लिए अनिवार्य है, बताया


आध्यात्मवाद ;-इसकी कल्पना बिना धर्म के नहीं हो सकती ...


आचार संहिता ;- में धर्म .सत्य , ईस्वर , अहिंसा ,साधन की पवित्रता ,आदि का विशेष स्थान है ...
महात्मा गाँधी ने भारतीय समाज में ब्याप्त बुरायिवो पर कठोर प्रहार करते हुए समाज का नव निर्माण करने का प्रयत्न किया ,

उनकी नज़र में भंगी भी उतना ही महत्वा पूर्ण है जितना की एक वायसराय ,
गांवो का विकास हो, विकेंद्री करण हो ,स्वास्थय ,आवास ,यातायात ,उर्जा ,तथा शिक्षा में वृद्धि हो , कृषि तथा क्रिसको का विकास हो ॥
१९३९ में वर्धा में संघ की स्थापना की ,जिसका उद्देश्य शिक्षा देना ,प्रसिक्षण देना था ,
मेरा मानना है गाँधी जी एक बारीक़ दार्शनिक थे

अपने कर्म -धर्म पर चलते हुए, भारत की आज़ादी के बाद ,भारत के अब तक के सबसे बड़े महापुरुष को ३० जनवरी १९४८ को (७८ वर्षीय ) महात्मा मोहन दास करम chand गाँधी को एक हिन्दू धर्म उन्मादी ने गोली मारकर सदी के सबसे बड़े प्रकाश पुंज का अंत कर दिया

गाँधी जी जैसे हड्डियों के ढांचे से और उनकी तरह विचार ,भावना ,जोश ,जज्बा लिए व्यक्ति की ज़रूरत है ,कम से कम कोई उनके संदेसो में जीने वाला ही मिल जाये ,पर अभाव है ,कोई उन्हें सत्य अहिंसा का पुजारी कहता है ,कोई नंगा फकीर तो कोई बापू तो कोई महात्मा कहता है ,
मै अगर उन्हें ईश्वरीय शांति दूत और मानवता का रक्षक कहू तो कोई अतिशयोक्ति न होगी ....
पाप से डरो पापी से नहीं ..

२ अक्टूबर को महात्मा गाँधी जी का जन्म दिवस पड़ रहा है ,,तो गाते है उनका प्रिय और ज्ञान से भरा गीत

वैष्णव जन तो तेने कहियेजे .पीर पराई जाने रे ...

पर दुक्खे उपकार करे तो मन अभिमान न आने रे ......

गाँधी जी के लिए ...

आत्मा ,महात्मा ,परमात्मा को भी गाँधी जी का सन्देश है ,

जहा सत्य ,सदभावना ,शांति , वही हमारा देश है

मनुष्य एक है ,फिर भी अलग अलग वेश है .....

हर कही कोई राजा-रंक कोई साधू -संत कोई फकीर और दरवेश है

जहा सत्य ,सदभावना,शांति , वही हमारा देश है

लेखक :- गाँधी जी के सन्देश वाहक ....