रविवार, 21 नवंबर 2010

बाबा गुरुनानक देव जी

आज २१ नवम्बर को ३ हिन्दू पर्व पड़रहा है ,कार्तिक पूर्णिमा , दीप दान का पर्व देव दीपावली ,आज बनारस के घाटो को सजा कर गंगा में दीप दान को देखते बनता है ,और आज के ही दिन बाबा भगवान गुरु नानक देव जी का जन्म दिन भी है ,जिन्होंने सिख धर्म को गुरुग्रंथ साहिब का ज्ञान दिया ,
वैसे पूरा अक्टूबर -नवम्बर भारत में त्योहारों का महिना है ,हर धर्म में कुछ न कुछ पड़ता है ,हर तरफ त्योहारों की धूम और होड़ मची रहती है ,इन दिनों ताबड़-तोड़ त्यौहार पड़ते है ,कश्मीर से कन्या कुमारी तक बंगाल से राजस्थान तक सभी प्रमुख देवी देवता और पुण्य दान धर्म के पर्व पड़ते है ,हिंदी भाषियों और उत्तर भारतीयों को तो पर्व -त्यौहार से फुर्सत ही नहीं मिलती चाहे नवरात्री हो या सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ ,और आज का दिन , सभी विशेष है ...इन्ही के बीच एक पर्व पड़ता है ,इस दिन आवला के वृक्ष के निचे भोजन बनाया जाता है ,यानि पिकनिक और इसी दिन शरद यानि जाड़े ऋतु की दस्तक मिल जाती है ।
अब कहानी ...बाबा गुरु नानक देव अपने धर्म ,कर्म ,और कर्तब्यो को निभाते हुए एक गाँव गए ,वहा उंनका हर ब्यक्ति ने यथासंभव आदर सत्कार किया ,गाँव के रियासत के राजा भी उनके दर्शन को आये ,उनसे बाबा के पैरो की धुल ,सूखे होठ ,कुछ फटे कपडे ,और हाथो चेहरे पर सिलवटे देखी न गयी ,वह पूछते है ,बाबा आप को क्या मिलता है ,जो ज्ञान ,राह,और परोपकार बाँटतेफिरते है ,आपको मै अपनी सारी सेवा दे रहा हु ,सारे धन दे रहा हूँ ,आप आराम से जिंदगी गुजारे , इस बूढ़े शरीर को आराम दे ,वैसे भी आप के पास धन की कमी नहीं है ,
तब बाबा गुरु नानक बोलते है ,बेटा यही तो बूढ़े सरीर की वास्तविक कमाई है ,और ये मेरा कर्त्तव्य है , ईश्वर के पास जाउगा तो क्या यही कहुगा ,कि मै कामचोर था ,?
रही बात मेरे दुःख -दर्द ,परेसानियो की तो ये तुम्हारे जैसे प्रेमियों से मिलने के बाद स्वत : दुर हो जाती है पुत्र ,....
लेखक ;- बाबा के पुत्र ...वाराणसी (उत्तर प्रदेश ) एम् कॉम .२०१०

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

अल्लाह रहम -एक दर्द
























आज मुस्लिम समुदाय का त्यौहार ईद -उल -अजहा है , जानते है ,इस धर्म और त्यौहार के विषय में ईद उल अजहा का प्रारंभ अल्लाह द्वारा इब्राहीम की परीक्षा से है ,इब्राहीम अल्लाह के नेक बन्दे थे ,अल्लाह देखना चाहते थे ,की इब्राहीम कही मोह के बंधन में बधकर मेरी अवहेलना या ढोंग तो नहीं कर रहा है ,तो अल्लाह उनसे उनकी संतान की बलि मांगते है ,चूँकि इस्लाम में वचनों को बहुत अहमियत दी जाती है ,बात वचनों से मुकरना पाप होता है ,और नियमो पर रहना पड़ता है ,अब स्वयं ईश्वर भी अपने बात से मुकर नहीं सकते थे ,
इब्राहीम अपने पुत्र का बलिदान देने को तैयार हो जाते है ,तथा घोर पीड़ा और बहते आंसुवो से अपने अपने पुत्र की बलि देने जाते है ,अत्यधिक पीड़ा से आँखे बंद कर पुत्र को जैसे ही बलिदान करने जाते है , अल्लाह उनके पुत्र को गायब कर भेंडा रख देते है ,
तब से इस्लाम धर्म में बलिदान की परंपरा-प्रथा चली आ रही है ,
इस्लाम धर्म की नीव हज़रत मोहम्मद साहब ने रखी ,इनका जन्म अरब के मक्का में हुआ था ,इस्लाम धर्म इन्ही के सिद्धांतो पर आधारित है ,बचपन से ही नेक ,शांत ,और ईमानदार इतने की लोग उनको धन देकर भूल जाया करते थे ,आज भी लोग इस्लाम धर्म के समर्थक मक्का -मदीना इनकी राह में हज करने जरूर जाते है ,
इस्लाम धर्म के लोगो की देन कुछ अमर कहानिया है , -- अलिफ़ लैला , सिंदबाद , अलादीन , अकबर -बीरबल ,मुल्ला -नसरुद्दीन , अली बाबा , हातिम ताई , आदि रोमांचक कहानिया मुस्लिम समुदाय की देन है , जिसे बड़े व बच्चे दोनों आज भी बडे चाव से पसंद करते है ,
अब मेरी कहानी जो मैंने लिखा है ,बात उस समय की है ,जब मोमिन एक बच्चा था ,उसे अपने दादा से खेलना व साथ रहना अच्छा लगता था ,दादा भी उसे बहुत प्यार करते अच्छी बात बताते -कहानिया सुनाते, धीरे धीरे मोमिन बड़ा होता गया तो उसे अच्छी -और उची शिक्षा के लिए दूर देश भेज दिया गया ,दिल में प्यार व दादा व परिवार से बिछड़ने के गम से ,वह विदेश में पढने चला जाता है ,समय बितता है ,एक दिन उसके दादा बीमार पड़ते है और दुनिया से रुखसत हो जाते है ,मोमिन को दूर देश में होने से आने में देरी होने से वह अपने दादा से नहीं मिल पाता है ,विसाद पीड़ा दर्द में वह व्याकुल हो उठता है ,आंसू भी सुख जाते है ,परन्तु दिल को सुकून नहीं मिल पाता है ,फोटो , विडियो आदि से दूर -परे वह सोचता काश एक बार दादा जी से बात तो कर लेता , उसके दर्द की कोई इन्तहा नहीं थी ,
समय बितता गया ,और अपना खेल दिखाता गया ,मोमिन अब पूर्ण रूप से एक पढ़ा -लिखा उचे पद पर कार्यरत था ,वह ईश्वर से प्रार्थना करता ,की ईश्वर एक बार उसके दादा के दरसन करा दो ,वह क्या कहना चाहते थे ,
आज मोमिन का घर बन रहा ,उसमे नए दरवाजे लगते है , तो एक दिन उसे अपने नए दरवाजे पर एक तस्वीर दिखती है ,जो उसके बाबा के तस्वीर से मिलती थी ,पास जाकर देखने पर यह तस्वीर उसके दादा जी की थी ,माथे पर तिल ,उठा हाथ , उसे कुछ समझ नहीं आता ,आज मोमिन के दादा की पुण्य तिथि थी ,आज सुबह सुबह जब वह अपने दादा के कब्र पर जाता है तो उसी कब्र के पास एक पारिजात उग आया था ,और उसके फूल आस -पास कब्र पर बिखरे पड़े थे ,
मोमिन अब भी कुछ नहीं समझता ,वह घर आता है ,लकड़ी वाले से पूछता है ,ये लकड़ी कहा से आया है , वह उसे एक व्यक्ति का पताबता देता है ,तो वह उस आरा मशीन वाले से पूछता है , मेरे घर में जो नीम के दरवाजे लगे है ,उसे तुमने कहा से काटा ,वह बता देता है , वह बगल वाले कब्रिस्तान के ज़मीन के मालिक का है ,
आज जुम्मा था ,उसे कुछ समझ में नहीं आता ,शाम की नमाज़ में सर झुकाने पर उसे ऐसा मालूम पड़ा अल्लाह के साथ उसके दादा भी उठे हाथ से उसे आशीर्वाद दे रहे हो ,उसकी इच्छा पूरी हो गयी थी ,और ईश्वर -अल्लाह पर बिश्वास बढ़ गया था ....
कृपया कृपया मेरी रचना चोरी न करो ...
लेखक - आपके दोस्त २०१० , एम् .कॉम ....वाराणसी
































रविवार, 14 नवंबर 2010

विशेष विद्यार्थी -1

प्यारो बच्चो हर वर्ष की तरह इस बार भी भारत में बाल दिवस १४ नवम्बर को पड रहा है ,बाल दिवस को भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है ,उन्हें बच्चो से बहुत प्यार था ,गुलाब उनका पसंदीदा फूल था जिसे वो अपने वस्त्र से लगा कर रखते थे उन्होने ,,बच्चो के कहने पर थाईलैंड से सफ़ेद हाथी पानी के जहाज से भारत मंगवाया था ,उनका दिया नारा आज भी हमारे साथ है ,जो है --"आराम हराम है "
शिक्षा व्यक्ति को पूर्ण बनाती है , तथा स्थापित और सम्मान योग्य बनती है ,बिना शिक्षा व्यक्ति अपूर्ण है ,|
हमें पहले ही बताया गया है ,काक चेष्टा बको ध्यानं ,स्वान निद्रा गृह त्यागी अल्पहारी ये पांच विद्यार्थी के लक्षण है ,इन्ही का समावेश हर विद्यार्थी में होना चाहिए ये अजेय होगे ......
कौवे की तरह सतर्क क्या ले क्या न ले नज़र में क्या हो क्या न हो ,किसको ध्यान में रखे ,क्या याद करे क्या छोड़ दे ,पूरी किताब तो रट नहीं सकते ,
बकुले की तरह मेहनत ,ध्यान एक बार में हटो नहीं ,कुछ तो एक पाठ तो याद करो ,कुछ तो लो जैसे बकुला कुछ नहीं तो छोटी मछली तो पा ही जाता है ,ये उसका ध्यान है ...
स्वान निद्रा ब्रम्ह, मुहूर्त में सुबह उठ कर पढो ,, घर के सुख न लो ,हल्का भोजन लो नीद और भारीपन से आलस्य आती है ,
एक बार फिर कौवा का चेष्टा कौवा तो देखा ही होगा ,कंकड़ वाली कहानी ,कौवे को सायद आदमी से ही सबसे ज्यादा डर रहता है इसलिए वो आदमी से ज्यादा सतर्क रहता है ,आप को किस से डर है -विज्ञानं से संस्कृत से या अंग्रेजी से या फिर केमिस्ट्री से या गुणा-गणित से ...आप उसे पत्थर नहीं मार सकते ...कौवा अपने बच्चे को सिखा रहा था ,मनुष्य झुके तो समझो गड़बड़ है उड़ जावो कौवे का बच्चा बोला अगर वो पहले से ही या अपने जेब में ही पत्थर ले के आ जाये तो ..........???????????सिखने को आतुर रहो ,ग्राही सदा प्यासा रहता है ......
बकुले को देखा है ,वह मछली पकड़ने में इतना स्थिर और ध्यान लगाता है ...की मछली तक समझती है ,ये तो स्थिर पुतला है ....और बकुला उन्हें झपट कर खा जाता है ,वह तो एक टांग पर रहता है , , कराटे में एक पैर पर जोर देकर उर्जा अर्जित की जाती है .....पढो जिस पर शक हो की ये प्रश्न आ रहा है ,या आ सकता है ,उसे बकुले की टांग की तरह दोहरावो ..ध्यान से ...बकुले के ध्यान से
कुत्ते की तरह नीद ,कुत्ते को ध्यान लगाकर देखो तो लगेगा सो रहा है ,वह सोता भी है ,पर हल्के आहट पर उठ जाता है ,या उसके दिमाग में एक बात चलती रहती है ....पर वही बात उसे उठा देती है ,जग जाता है , नीद लो पर काम पर उठ जावो वरना एक्साम में पास होना तो दूर परीक्षा ही छूट जाएगी ....
गृहत्यागी से तात्पर्य घर के बंधन ,और सुख में विद्या नहीं अर्जित की जा सकती मतलब विद्या लाड -प्यार में नहीं होती वो बच्चा सीखेगा भी नहीं ....ज्ञान प्रभावित होगा इसलिए पहले के राजा-महाराजा अपने पुत्रो को बाहर भेज देते थे , , मतलब लाड -प्यार में विद्या नहीं होती|
तथा ऋषि -मुनि लोग भोजन की उनकी आवश्यकता उन्ही से भिक्षा मंगवा कर पूरा करते थे , जो सन्देश देता है ,भोजन कम करो यहाँ ज्ञान है ,भोजन नहीं ,ज़माना मानता है ,पेट पापी होता है ,पर धर्म राज उदधिसटीर कहते थे ,पेट हमारा पाला कुत्ता है ,और बाद में वह ससरीर कुत्ते सहित स्वर्ग भी गए ...उनका यक्ष प्रश्न का उत्तर आज भी विश्व प्रसिद्द है ,|
भगवान् गौतम बुद्ध पूरी तरह अन्न त्याग कर ज्ञान ग्रहण करना चाहते थे ,पर विफल रहे , पर सफल भी नहीं रहे और आखिर में मध्यम मार्ग पर चलने का ज्ञान दिया हल्का भोजन लो खिचडी ,मूंग ,मिश्री -दही ,खीर ,उत्तम है ...
प्यारो बच्चो यहाँ मैंने आप के लिए ही लिखा है .....मेहनत की परवाह नहीं ...परवाह आप की है ,यदि आप पढने में कमजोर हो तो दीप ज़ला कर पढो मोम बत्ती या लालटेन की रौशनी में पढो ध्यान केन्द्रित होगा ....ये आप पर निर्भर करता है ,
स्वयं के अज्ञात अपने प्रतेक शिक्षक को प्रतिदिन १-१- प्रसन्न पूछने वाला सच्चा -सच्चे विद्यार्थी के लक्षण है , बसर्ते वह विषय वार हो ,और ये पढने और कौतुहल वाले विद्यार्थी हो सकते है ,....मै संकोच वसनहीं पूछ सका
एक बार बल्ब के रोशनी के आविष्कारक थोमस अल्वा एडिसन अपने बचपन में पढ़ते समय अपने शिक्षिका से पूछते है ,चिड़िया उड़ सकती है ,पर आदमी क्यों नहीं ,ज़बाब नहीं मिला उल्टे उन्हें क्लास से बाहर कर दिए गए वरना आज हवाई जहाज का आविष्कार उनके नाम होता , यदि आप का बच्चा खुरापाती है ,तो सुविधा मिलने पर एक अच्छा वैज्ञानिक बन सकता है ,जैसा की एडिसन थे आप उनकी कहानी पढ़े ....आज सबसे ज्यादा आविस्कर और शोध का रिकॉर्ड सायद उन्ही के नाम है ,,,
भेजा खाने में भी ज्ञान मिल सकता है , खूब पूछो-खोद खोद कर पूछो , जैसे अखरोट खाने से भी भेजा तेज होता है ,अखरोट का आकार हु बहु भेजे जैसा होता है ,जो भेजे जैसी संरचना रखता है ,भेजा कभी फ्राई न करना वरना एडिसन वाला हाल होगा , और ऊपर से पोषक तत्व भी नस्ट हो जायेगे , फिल्म तारे ज़मी पर वाले शिक्षक कम ही मिलते है ,
एक बार एक शिक्षक अपने क्लास में पढ़ा रहे थे ,उन्हें अपने लिए एक योग्य विद्यार्थी की तलास थी ,वो पढ़ाते -पढ़ाते रुक -रुक कर भटक भी जा रहे थे ,तो उन्होंने एक युक्ति चुना कहा जो मै पढ़ा रहा हु उसको पुछुगा ?आखिर में सभी से प्रश्न पूछते है,एक विद्यार्थी थोडा बहुत सवाल का ज़बाब देता है ,साथ में टना-टन बाहर से आने वाले सभी मधुर संगीत भी बता देता है , शिक्षक कहते है मुझे इन्ही गानों की तलाश थी ,सायद उन्हें एक योग्य विद्यार्थी और विद्यार्थी को एक योग्य शिक्षक मिल जाता है ,सायद दिल मिल गए .....
एक फिल्म जाकी चेन की फारबिडएन किंग डम में एक बड़ा मार्मिक दृश्य है ....गुरु बोलता है ,यदि हम अपने मोह और इच्छावों को और लालच को त्याग दे हम अमर है , एक और फिल्म में ड्रंक एन मास्टर वाला हाल भी मेरे जीवन में आया मै एक शिक्षक के घर कोअचिंग पढने जाता था ,वो घर पर नहीं होते और सैकील से लौटते वक्त मेरी ख़ुशी देखते बनती थी ,बड़े शातिर दिल शिक्षक थे ,इंटर में ......
आप को अगर इन drunken master द्रिश्वो को देखना हो तो यू टी युब पर खोज सकते है ,सायद मिल जाये या फिर जो चाहिए वो बात गूगल पर एड्रेस बार पर लिख कर पा सकते है , हा अगर न मिले तो लिखने में विविधता हो और ऊपर से पहला -दूसरा चयन हो ...अगर हिंदी में कोई कहानी या लेख चाहिए तो तो पहले गूगल ऑफर से हिंदी पर क्लीक करे सारा हिंदी हो जायेगा , फिर लिखेगे तो हिंदी के विकल्प भी आयेगे ......जो चाहिए चयन कर प्राप्त कर सकते है ,
नेट पर विशेषता अनुसार अलग अलग स्थान होता है-इन्हें साईट कहते है , अलग अलग विषय वार आप पता जानते रहे तो आसानी होगी .... जैसे ये मेरा पता है - जहा आप पढ़ रहे है ......लिखना बहुत कुछ है -बच्चो और छात्रों के लिए ...अगले भाग में .....
लेखक ;- छात्रों का हितैषी .......Ravi kant yadav एम् .कॉम २०१०

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

दूरदर्शन की दुरिया....




























जी हां ,दूरदर्शन हमारा राष्ट्रीय चैनल है ,लेकिन प्रसारण पर ऐसा लगता है जैसे विपत में हो ,एक समय था ,रामायण , महाभारत ,सीरियल प्रसारण पर हर जगह करफिऊ लग जाता था ,जहा टी .वी । होता वहा मेला लग जाता था ,पर आज २०१० में दूरदर्शन वही का वही है ,आज मेला तो नहीं लगता पर झमेला जरूर लगता है ,एक समय जंगल बुक ,चंद्रकांता ,कृष्णा ,शक्तिमान ,का भी युग आया ,पर आज जैसे -तैसे चल रहा है ,हा, एक बार दूरदर्शन मेट्रो जब घर घर फ्री टू एयर मिलने लगा , तो पैसो वालो -मंत्रिवो -विभाग की आँख फूटी उनसे गरीब भारतीय की खुसिया नहीं देखि गयी और इस चैनल को बेच दिया ,और गरीब बच्चो और किसानो की कमाई से अपनी झोली भर ली और डी.टी .एच , मशीन बना कर लगातार कमाई का जरिया बना दिया ,एक तरह से सही ही किये क्यों की ,चैनल बदलने के चक्कर में ४०० टी.विया हर जिले में ख़राब हो रही थी ,एक बार मैंने सोचा चलो टी.वी । मकैनिक ही बन जाऊ ...
अब हाल यह है , कि दूर दर्शन पर फिल्म में ठाकुर बोलता है ,"ये हाथ नहीं फांसी का फंदा है , गब्बर ," तभी दूरदर्शन कि विजली गुल ...लगता है ,दूर दर्शन बेचारो का अपना इन्वेर्टर भी नहीं है , और फिर टकटकी लगाए दर्शक " ये हाथ हमें दे- दे ठाकुर से फिल्म देखना प्रारंभ करते है " दूरदर्शन सन्देश ये ,देता है .कि कामचोरो जावो काम करो ,इसी लिए देश विकशित नहीं हो रहा .....
एक -एक फिल्म में १० -१५ मिनट के ब्रेक या प्रचार आते है ,एक फिल्म ५ घंटे तक चल जाती है ,वो भी काट -छांट कर इतना विज्ञापन - तो फिर पैसा भी आता होगा ,तो ये पैसा को दूरदर्शन के अधिकारी लूट -खसोट लेते है क्या ?
बंगाली -तमिल फिल्म उत्तर प्रदेश में दिखाई जाती है -नीचे अंग्रेजी में उसका अनुवाद किया जाता है --इससे थोड़ी बहुत अंग्रेजी मज़बूत हो सकती है
शास्त्रीय संगीत पर तो कसम से मज़ा आ जाता है ,लगता है ,अगर टी.वी.न बंद किया तो कही स्क्रीन ही न चिटक -तिड़क कर फूट जाये ,
ता -थई -तक को तकते -तकते पैरो कि रेखा देखकर ,भविष्य बताना तक सिखा जा सकता है ,कुछ कार्यक्रम कसम से ऐसे होते है ,कि कार्यक्रम के लिए न देखकर प्रचार के लिए देखे जाते है ,प्रचार देखकर ही ,मनोरंजन हो जाता है ,कभी -कभी ऐसा लगता है ,हे भगवान् एक प्रचार तो आ जाये ? और नकेल भी ऐसी कि कही भागे तो एक और दूरदर्शन चैनल मिलेगा ,अंग्रेजी -हिंदी समाचार का चैनल ...मानो चिढ़ाकर कहेगा" बच कर कहा जावोगे बच्चू " मै पूछता हु ,हर राज्य व भाषा अनुसार अलग-अलग दूरदर्सन का चैनल है ,फिर रास्ट्रीय चैनल के साथ अत्याचार क्यों हो रहा है ,आप बताये व इसके अधीन मंत्री महोदय ....आप लोग बता भी नहीं पायेगे क्यों कि आप के पास ५०० चैनल है , आई .पी.टी.वी। है ...होम थेअटर है ॥
ये चैनल बना , पैनल ,कोटा के लिए निभाए रोल ...
कही अब्यवस्था, कही नहीं विजली ,विजली आयी तो खुल गयी पोल ...
देखा जो दूरदर्शन तो चित्रपट ,का डिब्बा गोल ...
सिग्नल रहित टी.वी। देखकर थक गयी ज्योति ,क्या खाक तोल मोल कर बोल .....
लेखक ;-चैनल बाज़ ... एम् .कॉम .२०१० ....वाराणसी (उत्तर -प्रदेश )

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

मौला -मौला संगीत

दुर्वासा ऋषि





दुर्वासा ऋषि एक अत्यंत क्रोधी ऋषि थे ,श्राप इनके मुख पर रहता था ,जीवन में केवल कुंती के आतिथ्य -सत्कार से प्रसन्न होकर इन्होने
एक मंत्र दिया ,जिससे वो किसी भी देवता का आहवान कर उसके दर्सन से उसके अंश को जन्म दे सकती थी ,इन्होने कौतुहल और मंत्र की शक्ति को देखने के लिए ,सूर्य देव के मंत्र पढ़ा परिणाम स्वरुप सुर्यपुत्र कर्ण का जन्म हुआ ,जिन्होंने उसे अविवाहित होने के कारण कर्ण का त्याग कर दिया , बाद में उन्होंने जंगल वास में अपने पति पांडु के शापित होने पर ,देव धर्मराज के मंत्र से युधिस्टीर, वायुदेव के मंत्र से भीम ,इन्द्र देव के मंत्र से अर्जुन , और पांडु की दूसरी पत्नी को मंत्र द्वारा देव वैध अश्विनी कुमार के मंत्र से नकुल -सहदेव को पुत्र रूप में प्राप्त किया ......
आज हिन्दू धर्म का पर्व दीपावली भी है ...दीप और प्रकाश का पर्व श्रीराम विजय और अपने राज्य वापसी से होता है ,आज के दिन सृष्टी पर अपनी कृपा दृष्टी रखने वाली ,समुद्र मंथन से उत्पन्न १४ रत्नों में से एक माता लक्ष्मी की कृपा के लिए भी पूजा होती है .....

लेखक ; - एम् .कॉम २०१० ....एक आराधक

सजा















पृथ्वी से दूर ,यहाँ की भाषा में कोई २७ प्रकाश वर्ष दूर ,प्रकाश की रफ़्तार से चलने पर भी २६ साल वहा पहुचने में लग जायेगे ,उसका अपना सौरमंडल है ,जो अपनी धुरी पर घूमता है ,और सायद किसी समय पृथ्वी के आस -पास होकर गुजरे तो हबल से देखा जा सके ,

वह ग्रह बहुत शांत और सुन्दर ग्रह है ,जहा चारो तरफ एक ही प्रकार के प्राणी है ,उनको देवदूत कहा जाता है , वे अपने कर्मो से बधे रहते है ,ब्रहमांड रक्षक चतुर आत्मावो से निपटते रहते है ,जिस ग्रह की बात है वहा के निवासी के शरिर में दो दिल होते है ,यदि वो वहा का कानून तोड़ता है ,और कोई अपराध करता है ,तो उसका दूसरा दिल निकाल कर पृथ्वी पर फेक दिया जाता ,जो यहाँ पहुच कर टूटता तारा बन जाता है , वह दुसरे दिल के अभाव में अपने आप मछली की तरह तड़पता है ,उसे वहा के कानून में ठंडी आग या तरसती मौत की सजा कही जाती है ,वह स्वयं ही अधुरा महसूस करता है ,दिल के अभाव में तड़प कर धीरे धीरे कमजोर होकर मर जाता है ,चूकी उसकी आखिरी इच्छा अपने दुसरे दिल से प्रेम की होती है ,अतः उसे पृथ्वी पर जन्म लेकर अपने दुसरे दिल को पाने की अभिलाषा शायद ,प्रेम -शादी -विवाह ,रिश्ते आदि बन गया ,

और मानव बन कर अपने दुसरे दिल को ढूंढता फिरता है ,ये वही ऊपर वाला उसका दिल होता है ,लेकिन वह अपने दिल को खोजता ज़रूर है , खोजे भी क्यों वो उसका अपना दिल जो होता है .....



लेखक ;- परग्रही एम् कॉम २०१० , वाराणसी