रविवार, 28 फ़रवरी 2010

पिसते लोग .....और बनती चटनी भाग 1











मै न कोई बाबा हु न कोई हीरो मै एक देश भक्त हु , यदि कही कुछ दे सका और आप उसे उतारते है , तो ठीक भी है नहीं भी ,क्यों की प्यासा जल को कंठ से निचे ले जाये तो राहत में भी आह कर उठेगा ,आज मै फिर लिखने को विवस हु देश के ८० जवान सायद ७६ जिनके लिए कार्य करते थे ,उन्ही लोगो ने मार दिया या तो हम उनके लायक नहीं है ,या वो हमारे लायक नहीं है ,यदि हम शक्ति लगाते है ,तो कस्ट तो दोनों ही तरफ होगा घरो को दुःख तो होगा ही सायद गाँधी जी यही कहते थे ,हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है , या रास्ता अन्य नायको अनुसार कंटीली झाड़ियो को काट कर बनाया जा सकता है , लेकिन दुःख तो होगा ही ,रक्षक बनो भक्षक नहीं ,कभी हमारी प्रधान मंत्री कहती थी जब देख भाल नहीं कर सकते तो पैदा ही क्यों करते हो ,तब हमारे ही देश के धर्म ने कहा देख भाल तो ईश्वरकरता है ,
अपने हाथ की लकीर न देखो उसे हम बनाते है वो हमारे हाथ में है ,अपने हाथ की शक्ति देखो कर्म करो नहीं धर्म करो वो कर्म को उंगली बनकर रास्ता दिखायेगा , मै गृह मंत्री होता तो इश्तिफा देता तो देना मतलब देना मस्के बाज़ी में भी उसे स्वीकार नहीं करता सायद गृह मंत्री कही बंधे हो , कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक प्रॉब्लम है ,
यदि हम पाकिस्तानी भाई चीन से अपनापन को वो हमसे खुस नहीं है तो कश्मीर से होने वाली कमाई का कुछ हिस्सा उन्हें मिलना चाहिए याद रहे गलती सजा तब बनती है जब दुहराया जाय ,
दोस्तों देश का पैसा जा कहा रहा है ,महगाई बढाती जा रही है ,गरीब मरते जा रहे है ,किषानो की आबादी घटती जा रही है ,इसी तरह रहा तो खेती कौन करेगा ,
क्या पैसा कागज़ होता जा रहा है ,देश का पैसा यहाँ के नागरिक ,यहाँ की जमीं ,यहाँ के श्रोत ,उत्पादन ,और परिश्रम है ,हमारा देश ६०% तक किशान प्रमुख और व गरीब है ,लेकिन केवल अमीरों की चलती है ,यदि हमारी सरकार किषानो को हक़ देने में योग्य नहीं है तो चिप्स और बिस्किट की कंपनी खोल ले ,पैसा को तो हम खा पि नहीं सकते ,तो यही हो सकता है की ,सारे देश में कुछ पैदा ही नहीं होता ,यहाँ बंजर ज़मीं है ,नदी नाले या साधन नहीं है ,या तो खेत घटते जा रहे है ,और आबादी बढाती जा रही है ,और या तो ये हो सकता है जो कुछ पैदा हो रहा है ,उसे दबा लिया जा रहा है ,या बाहर भेज दिया जा रहा है ,जो दीखता है वो बिकता है ,लेकिन जो नहीं दीखता मिलता वो कीमती हो जाता है , जैसे हिरा सोना छिपे होते है ,
भारतीय मुद्रा डोल्लर के मुकाबले २० - २५ होनी चाहिए यूरो की तर्ज़ पर एशियन असीन आनी चाहिए ,
विदेसी कंपनियों को थोडा भी बढ़ावा न दो भूल गए क्या गाँधी जी ने भी कहा है ,आज महगाई की आग लगी है ,ये विदेसी कंपनिया दीमक है ,
आज १ अरब १० करोड़ वाली जनता ८० %महगे और विदेसी उत्पादन उपकरण आदि इस्तेमाल माल कर रहे है तो महगाई क्या ख़ाक जाएगी ,
जब १०-२०-२५ पैसे चलन से बाहर हो सकते है तो एक समय पर १ -२-५ रूपये भी अपनी कीमत खो दे ,या इनकी कीमत १०-२०-२५-पैसे भर रह जाये ,
विदेसी तो अपने तकनीक द्वारा भी हमारा नोट छाप कर भी अर्थ व्यवस्था को बिगाड सकते है ,
हम पहले चेत ते नहीं बाद में मरने पर चिल्लाते है ,हम अपने बने बनाये ढाचे को ही नहीं संभाल पा रहे है ,
कारण सभी जानते है ,बाहरी कारन है तो देश की सीमा ही बंद कर दो ,हमारे पास कमी नहीं नहीं है ,आज भी रेल वही पुराने अन्ग्रेज्वो के बनाये पटरी पुलों पर ही चलती है आज भी उनके बनाये bijli के खम्भे ,तार है उनके बनाये पानी के पा इप से आज ठीक पानी नहीं aata ,
अपने ही देश घर में हम जनता सुरक्षित नहीं है ,हा रस्म जरुर निभा इ जाती है ,इतने बड़े देश में समस्या है ,इसलिए अलग देश या राज्य की मांग उठती है ,अलग राज्य दे दो न ,
सरकार कहती है मै दूर दर्शी कार्य क्यों करू क्यों की उसका सारा क्रेडिट अगली सरकार या मंत्री ले लेगा , फंड आते है और फुश हो जाते है ,जनता के साधनों का मूल्य वृद्धि ,स्थान ,सरकार हमारा ही धन लेकर अपने लिए व्यक्तिगत प्रयोग करती है , जो कुछ है उसे ही संभाल नहीं पा रही है तो विकाश क्या खाक होगा ,साल में दो - तीन रेल दुर्घटना जरुरी है ,एक दो सेना के विमान क्रश हो ही जाते है , ४-६ बड़े हमले भी हो ही जाते है ,आदि आदि
यदि एक स्वतंत्र देश विकशित बनाया जा सकता है तो ,वहा के नागरिको से ,स्वतंत्र देश का कोटा ३० साल में विकशित बनाया जा सकता है ,नेतावो द्वारा नीद वो भी हराम की को त्यागना पड़ेगा ,हर समस्या विकराल होती है ,
नौकरी के लिए युवा पिरान्हा मचली बन जाते है ,
पैसे के लिए पद चाहिए ,पद के लिए पैसा चाहिए और पद है तो उसका दोहन चाहिए
६०% लोग पद का गलत प्रयोग करते है ,अपने सपथ पत्र को भूल जाते है ,
योजना व्यय के लिए नहीं लाभ ,मदद ,रोजगार ,और अर्जन दे तो सफल है ,
कुछ तो ख़तम हो जाये गा कुछ रहेगा जो रहेगा वह भी थोड़े समय के लिए ही रहेगा यही लोभ लालच है ,अर्थात जो कुछ है थोडा है ,और जो है वह भी ख़तम हो जायेगा यही लालच है ,
मुझे लगता है ये सेठ बनिया लोग सामान कम ज़हर ज्यादा बेचते है ,मिलावट तो इनके खून में ही है ,एक बार फिर हमारे पास सब कुछ है पर हम उसे संभाल क्यों नहीं पा रहे है ,

ये नेता लोग हमारे प्रतिनिधि है या हमें तास के पत्ते समझते है ,कभी कभी कह भी देते है मै अगर हरिश्चंद होता तो आज यहाँ नहीं होता ,संसद में कौवा राग क्यों होता है ,सब झूठ ही काव काँव करते है और अपने गिरेबा में झांकते तक नहीं कितना हमारा बैलेंस है ,यहाँ तक की बैलेंस भी नहीं देखते ,ज़रूरत ही नहीं है ,अकूत दौलत जो है ,देश की कौन कहे विदेश में अकूत दौलत है ,पता नहीं कैसे ये लोग देश में आग लगाकर बड़े प्रेम से होली मानते है ,ठीक भी है जनता केवल रंग देखती है ,
वाह रे भारतीय नेता काँव काँव करके बस पद चाहिए ,मेरी सरकार तो है नहीं पूरा जोर लगा दो जनता खुद ही त्राहि त्राहि कर अगली बार जीता देगी ,काँव काँव करने की क्या जरुरत है जब आप के पास मत का अधिकार है , जनता उल्लू नहीं है ,संसद के कार्य में बाधा न डालो ,
और यदि आप अपने विचारो को सुद्ध नहीं रखते है ,तो आप परेसान रहेगे परेसान करेगे और खुस भी नहीं रहेगे ,
और हां विचारो सोच को तो भगवान् भी नहीं रोक सकता हा वे सुद्ध किया जा सकता है ,
बच्चा ,वृद्ध ,महिला , पर अत्याचार हो रहा है ,भोली भली जनता पिस रही है और आनंद नेता,भ्रस्त , और पैसे वाले ले रहे है ,
भारत भ्रस्ता चार में टॉप ५ में आता है , ये हम स्वयं अपने देश को खोकला कर महगाई बढ़ाते है ,सभी का योगदान होता है तो गाँव में झोपड़ी उठती है ,
गिने चुने ही सच्चे रह गए है ,और वे भी भ्रस्ताचार के विशाल वृक्ष के निचे दम तोड़ देते है ,यहाँ लालच है ,जलन है ,रुदिवादिता है ,अनियमितता है ,अव्यवास्ता है ,लापरवाही है ,चापलूसी है ,कानून तोड़ने वालो के लिए खिलौना है , और जो नियम कानून है वो भी कछुवा चाल से चलता है ,
हमें जरुरत है परिणाम नहीं कारन को हल करने की ,एक सुरक्षा लाख नियामत की ,
आज बच्चो के लिए स्कूल है लेकिन लोग अपने बच्चो को प्राइवेट महगे शिक्षा संस्थानों में क्यों भेजना पसंद करते है ,जबकि ये लोग मनमाना फीस लेते है ,और देते क्या है निपोर चरखा ताई ,बेल्ट ,कार्ड ,और भगवान् पता न क्या क्या ,
दो पंक्तिया देश ,भाई चारे ,और अपने सम्ब्रिदीके लिए
सुखी धरती करे पुकार ,
जनता में है ,हाहाकार ,
नेतावो को है धिक्कार ,
हे भगवान् हो देश का उद्धार ,
भाई चारे का मिट ता प्यार ,
कही बन्दूक कही तलवार ,
देश तो है अपना परिवार ,
बंद करो अब ये तकरार ,
भ्रस्ता चार है बेकार ,
बंद करो अब अत्याचार ,
देश तो है अपना परिवार ,
देश तो है अपना परिवार ,
सभी पैसे व प्रसिदी के लिए जी व काम कर रहे है ,देश के लिए कौन जी रहा है ,
भोग बिलास्ता पूर्ति पश्चात इनकी आवस्यकता बढ़ जाती है ,ये दावानल है ,आग है ,
अंत में आप सुद्ध है तो आप दुर्लभ है ,और यह आत्म मंथन के ज्ञान से ही होता है ,
कोई भी ताकत की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है ,
याद रहे आप स्वयं भगवान् है ,कैसे आप के अन्दर पांच अग्नि ,वायु ,जल,धरा ,और ,आखिरी अनखोजे अनंत आकाश है ...........................................................................................................सभी को संतुलित रखो और उनका अधिकार दो ...........अभी बस और अगले बार एक खोया हुवा व्यक्ति ......म.ग.का.वि.पि। म.कॉम। वाराणसी ,२०००९-10

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

सच्चा सचिन




सचिन का मै पुराना प्रसंसक हु , सायद मै पहली बार क्रिकेट देख रहा था , तब से ,खेल में बाल कहती है आप जहा भेजे बासऔर इसी तरह प्यार से भेजे ,गज़ब का कांफिडेंस और नियंत्रण मेरे ऊपर भी क्रिकेट का नसा चढ़ा और क्रिकेट के लिए हलुवा और समाज में कलुवा बन गया ,मै यहाँ क्रिकेट पर कुछ नहीं बोलूगा ,क्यों की ये पूरा पन्ना सचिन रमेश तेंदुलकर का है ,यदि भारत में क्रिकेट धर्म है तो सचिन उसके देवता है ,सर्जाह अकेले फतेह और शेन वार्न की धुनाई से लेकर सचिन अकेले थे ,और आज भी है जो ,नीरस दिन को भी होली दीपावली बना देते है ,एक समय ऐसा भी आया जब सचिन आउट होते थे तो लोग टी.वि । बंद कर देते थे ,आज भले ही भारत न , १ है ,परन्तु मैक ग्रथ और मुरली धर जैसे बोव्लर की कमी है ,एक रन नहीं बन्ने देता और दूसरा विक्केट के साथ रन रेट पर भी अंकुश लगाता है ,बोवलर की कमी को भारत के अब तक के सबसे ताकतवर बल्लेबाजों ने ढक रखा है ,ये वही सचिन है ,जिसके लिए पूरी विपक्षी टीम केवल सचिन के विक्केट के लिए खेलती थी ,और विक्केट लेकर ऐसा नाचते है जैसे मेढक को विज्ञानं कक्षा में रखते है ,या ऐसे कुदेगे जैसे कोई कर्रेंट लगा हो ,सचिन अब बाउंसर पर जरुर मुस्कराते है ,पाकिस्तान को लौट कर मुह तोड़ जबाब देते है ,और उनके विचारो को भी सुद्ध करते है ,कई देश केवल उन्ही को देख कर पिच तक बनवा देते थे ,कभी कभी वो ऐसा खेल खेलते है मानो बल्ला गन हो और चारो तरफ केवल नॉन स्टॉप धुल और धुवा हो , वे बेसक क्रिकेट के देवता और भारत रत्न के गर्व से हक़दार है ,एक भारत तीय होने के नाते मै ,मै उन्हें इससे बड़ा सम्मान पाते देखना चाहता हु ,सचिन का अपने बल्ले से प्रेम उनकी क्रिकेट पूजा को दर्शाती है , वे सदैव रन के भूखे रहते है ,और अपने विक्केट के अमुल्यता को बनाये रखने की कोसिस करते है ,वे प्रथम २, ४, सीढियों के मूल्य को पहचानते है ,वे क्रिकेट के लिए समर्पित है ,सचिन पर उठने वाली हर उंगली स्वयं में टेडी है , वे कितना ही मैच अकेले जीता चुके है , और भारत के सम्मान की रक्षा की है ,यही नहीं कई मैच में अपने बवलिंग से भी करिश्मा किया है , आधी टीम को अकेले ही छुट्टी कर दिया है , लेकिन हम आज भी उनके दो ओवर देखने को तरस जाता हु ,कल्लिस की क्या औकात है ,सचिन के सामने ??,हम खुसनसीब है ,जो उनको खेलते हुए देख रहे है ,वो अपने आप में भारत के गर्व है ,उन्होंने एक अच्छे महान खिलाडी को निर्माण एक ,अच्छे व्यक्तित्वों के साथ रखा है ,वे अपने गुरु जी का आदर सम्मान और गरिमा गान करते है ,इश्वर की शक्ति को पहचानते है ,और उसके सन्देश को दिल से निभाते है ,और कर्म ही पूजा है का सन्देश देते है ,वो रिकॉर्ड बनाने के लिए नहीं खेलते ,रिकॉर्ड उनको नमन करने के लिए बनते है ,सचिन देश की सीमा पर विराजमान हमारा विजय ध्वज है ,उनका वास्तविक कद बल्ला उठाये सूरज की चढ़ती धुप से बन ने वाली परछाई है ,जिसका वजन उनके पैर है ,उनका अहंकार जमीं पर सरक कर वो भी इस मुकाम और उम्र में फील्डिंग जितना है ,कहते है प्रसंसा अगर ................. लेकिन मै नहीं रुकुगा , मै तो कहुगा उन्हें भारत में एक बार मैन ऑफ मैच में मराठी भी बोलनी चाहिए , दिल का प्यार दिमाग को ही सही नहीं करता बल्कि पवित्र भी होता और पवित्र भी कर देता है ,और दिमाग का प्यार रोग ही फैलता है ,

यदि सचिन का रिकॉर्ड कोई तोड़ सकता है ,तो वो केवल कोई गणपति भक्त अन्य सचिन ही तोड़ सकता है ,जिसकी खुसी सचिन रमेश तेंदुलकर को भी होगी ,और सचिन वही हो सकता है ,जो जितने और जिताने के लिए खेले सच्चे सचिन के लिए ...........

जय भारत के वीर महान ,

क्रिकेट के आन ,बान और शान

भारतीय जनता के दिलो की जान ,

सर्व शक्ति गणपति का जिन्हें है ,भान


श्री कृष्ण सरन म मम: मम :,

सचिन रमेश कभी आये मेरी गली तो स्वागतम स्वागतम ,स्वागतम ,


आवो एक बार देश के लिए और सचिन के लिए बोले ,

ॐ लम्बोदर ,गजानन ,गम गणपति,सिद्ध विनायक नमो नमह :


इंडियन अ लोस्ट पर्सन........म.कॉम। म .गा.का .वि. पि .विस्वा विद्यालय वाराणसी ......२०१०.......




गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

ईर्ष्या जन्म -और सानिध्य




ईर्ष्या कोई नयी बीमारी नहीं है ,इसका जन्म बहुत पहले ही हो चूका था ,रामधारी सिंह दिनकर की कृति ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से तो पढ़ा ही होगा ,ईर्ष्या सदा कमजोर ही करते है ,जिसे ब्रहमांड शिक्षक कृष्ण ने साबित किया , द्वापर में कृष्ण की बढती प्रसिद्धी, गुरु पुत्र वापसी हेतु बलराम संग हाथो में हाथ लिए समर्पण व भावना से बलराम संग मानस भौतिक रूप में यमपुरी विजय ,ब्रह्मा का मान मर्दन ,इन्द्र का गर्व खंडित करने से छोटी उम्र के उनकी यश कीर्ति से विष्णु भी अंजान न रह सके ,साथ में विष्णु के मनोभाव को पिता की तरह विशाल हृदय माँ लक्ष्मी ने पढ़ लिया ,
माँ लक्ष्मी ने कहा प्रभु ,कृष्ण भी तो आप ही के संतान है ,तब भगवान् विष्णु ने कहा हे देवी मेरे अन्दर यह षडिक (बहुत थोडा )इर्ष्या जन्म हुआ कैसे ,जब की मै जग कल्याणकारी गंगा के सानिध्य में रहता हु ,देवी ने कहा देवी गंगा तो अपना दायित्व वहन ही तो कर रही है ,अतः यह सब बढ़ते पाप का असर है ...................??...प्रेषक .इंडियन ,म.कॉम.२ 2010

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

हारा ........




आज हर कोई कही न कही परेसान मिल जायेगा ,कोई के लिए बड़ी परेशानी है तो कोई थोडा बहुत परेसान है , आज के इस कलयुग में अच्छे लोग कम और बुरे लोग ज्यादा है ,अतः भावना में कोई निर्णय सोच कर ले ,विष सर्प का स्वाभाव होता है ,अतः संपर्क में भी सावधान रहे ,यहाँ दो पंक्तिया हारे को

तन्हाई की तलाश में समंदर की आगोश में गया,

किसी ने कहा पागल तो किसी ने कहा होश में गया ,

समंदर ने माँगा साथी जो कही रह गया ,

सजा दिया यही जहा से चला वही आ कर रह गया ,

दुनिया ही दिखाती ,सिखाती ,और ढालती है ,कोई एडिसन ,आइन्स्टीन ,गाँधी, सिकंदर, बावला आर्कमिडीस ,और दयासागर गौतम बुद्ध नहीं होता है , यही दुनिया उसे बना देती है ,इसलिए दुनिया बहुत सुन्दर है ,जीवन से सिकायत करने वाले ठीक ऊपर लिखे सायरी की तरह समंदर में फेके हलके वस्तु की तरह स्वयं वही आ जाते है , जहा से चलते है ,यानि सब व्यर्थ इसलिए पिचड़े नहीं ,सामना करो और विकशित बनो , नहीं कुछ तो दर्शक होने में क्या हर्ज़ है ,अब यहाँ ब्रह्माण्ड शिक्षक की वो बात तुम्हारा क्या गया , क्या लाये थे , क्या लेजयोगे,जो लिया यही से लिया ,कर्म करो , आदि आदि पढो .................

हा याद रहे पाप की सुरुवात ही मद होकर चरमता है , एक चिंगारी सब कुछ नास कर देती है ,इसलिए हिन्दू हाथो में रक्षा सूत्र बांधते है ,ताकि बुरे कार्य पर प्रथम नज़र पड़े और उसमे लिप्तता न हो और तिलक लगाते है ,की कोई राह दिखाए जिससे अनजान है ,अतः बुरे की,पाप की पहचान प्रारंभ में हो जाये तो सबसे उपुक्कत है ,स्वयं ज्ञान हो या पाप से बचने के लिए सरन ली जाये दो तरीका है , भगवान की पूजा पाप ,व बुरे कार्य से बचने के उद्द्येश्य से हो तो वो सर्वोत्तम होती है ,

पुरुष पुरुसोत्तम हो सकता है , परमात्मा नहीं ,यही हमारा प्रयाश हो ,या होना चाहिए ,इसका बोध उस वक्त कराया जाता है , सब बोलते है एक निसब्द शांत सुनता है ,

समय प्रमुख पांच देवो से भी बड़े देव है ,ब्रहमांड में सर्वोपरि है ,

कलयुग अभिमानु पुत्र परिच्छित , से बता कर मानव के जीवन को छोड़कर जीने पर उन्हें घेर लेता है , जैसे अहंकार ये भी तो मदिरा सामान है , चरित्र हीनता , क्रोध, से हिंसा , बिना परिश्रम के धन ,इनके शाखावो को खोजो वर्गों में रखो , हिंसा में आनंद , आदि आदि , कलियुग जो पेंडिंग थे , या था अपने स्तर पर सिपाही बनायेगे ,ये कलयुग परजीवी जैसे है ,हिंशा ,धन, चर्रित्र,नशा,आदि के घालमेल से अपना प्रकोप दिखायेगे ,और सजा भी देगे ,

विकल्प इस युग या समय के लिए जैन धर्म के सिद्धांत ,मन,के सत्य , धर्म, न्याय ,के तराजू ,से आपकी कमाई ,मरेगी नहीं ,दुःख नहीं होगा ,मैंने कहानी भक्ति और भावना के जरिये जो बात कहने की कोसिस की है , उसे पढ़े ,हिन्दू मानते है मानव जन्म ८४ लाख जन्मो बाद मिलता है ,पुण्य मिटने या कमजोर होने पर देवता भी मानव जन्म पाते है ,अतः आप भी देवता बन सकते है ,परन्तु देवता भी पूर्ण नहीं होते है ,

मानव प्रविती और मृत्यु सत्य के लिए ,दो सब्द .....


सभी चलते है ,मंजिल की तलाश के लिए ,

मंजिल से अनजान मंजिल की आश के लिए ,

मंजिल आयी भी तो सब कुछ नाश के लिए ,

जिस लिए चले व्यर्थ हो जाये सब एक मोह pass के लिए



दो सब्द सत्य और शक्ति के लिए ..........

समय के चार पहर सभी के पहरेदार हो गए ,

समय ने खेल दिखाया और फिर वही चार पहर सभी के हजिरदार हो गए
म.कॉम.२००९-१०



जीयो और जीने दो ........


जानवर तो अपनी जगह है , परन्तु मनुष्यों को उनकी जगह लेने से उनको ही नहीं समाज को भी खतरा उत्पन्न हो गया है ,मानव इंसानियत भूलकर जानवर होता जा रहा है ,स्पेन वाले सांड को खेल बनाते है और निर्दयता से मार डालते है ,अफगानिस्तान में बुजकशी खेलते है , पकिस्तान में जिबह करते है , हिंदुस्तान में बलि देते है ,अन्य पछिमी देश गाय के दूध से मन नहीं भरता , मांस के लिए मार देते है ,भारत में कामख्या देवी मंदिर बलि स्थानों में सर्वोपरि है , यहाँ देवी को बलि देते है , ये सब देखने में हृदय विदारक हो सकती है ,
आज के इस समाज में ये ,ये पुराने खेल उचित नहीं है ,आज भी देश में इनके प्रति कानून का टोंटा लगा है ,हो भी क्यों न यहाँ आदमी की ही फिकर मुस्किल है जानवरों को कौन कहे ,
हम सभी इश्वर की संतान है ,इश्वर के नियमो को गलत ढंग व परीक्षा के ज्ञान सन्देश को जनता अलग गलत विकृत तरीके से चयन कर रही है ,करे भी क्यों न वो धरती पर सबसे बुद्धिजीवी जो है , और उसे अधिकार है परमात्मा के नियमो को चुनौती देने का ??
जब हम जीवन दे नहीं सकते तो ,लेने का अधिकार कहा से है ?,हम उसकी बनायी संतान को दुःख देकर इश्वर को दुखी करते है ,
प्रभु यशु जो त्याग,करुना ,के देवता है ,जीव को दुखी न करो ,परमात्मा तुम्हे इसकी सजा देगा ,इशसे अनजान न बनो ,
प्रभु यशु एक खेल प्रेमी हिन्दू देवता से खेल खेलते है ,नियम और शर्त निर्धारित होते है ,हिन्दू देवता खेल अनुसार उन्हें कस्ट पहुचाते है ,परन्तु प्रभु यशु उन्हें लज्जित करते है ,और अपने वसूल पर खरे उतरते है ,और कस्ट पहुचने के कारण हिन्दू देवता के पुन्य उर्जा फल को खीच लेते है ,और बाज़ीगर बन जाते है ,
हिन्दू देवता उन्हें वचन बद्धता और सतर्कता सिखाते है ,
और प्रभु यशु कहते है जब तुझे भी दुःख दर्द होता है या होगा तो तू दूसरो को दुःख दर्द क्यों देता है ?..........म.कॉम। २००९-१०

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

भक्ति और भावना

.....भक्त भगवन के दरसन को आतुर प्रतिदिन उनकी पूजा करता ,बड़ी सह्रधा से फूल , धुप, दीप, आदि ,अर्पित करता ,उसकी आस्था चरम पर थी , वह पूरे समर्पण भाव से पूजा करता ,अब उसकी हिम्मत जबाब देने लगी थी ,एक समय इश्वर उसकी पूजा से प्रसन हो जाते है , स्वपन में वह इश्वर से मिलता है उसने सिकायत भरे सब्दो में कहा प्रभु आप बहुत देर बाद भी दरसन क्यों नहीं देते ,
प्रभु ने कहा प्रिय तुम अपनी आस्था में कंजूसी करते हो भक्त भाव विह्वल हो गया ,बोला प्रभु मेरे तरफ से क्या गलती हो गयी ,प्रभु ने कहा प्रिय तुम धुप अगरबत्ती ,दीप,फूल,चन्दन ,आदि से मेरी आराधना करते हो फिर धुप अगरबत्ती का पैकेट फेक क्यों देते हो ,क्या तुम्हारी आस्था की तरह उसमे सुगंध नहीं बसती ...............?!!म.कॉम। 2010

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

दो शब्द देश के प्रति ....देश प्रेमियों


स्वतंत्र देश जो मानव की सांस है , देश यह सब्द ही नहीं एक देवी और देवता के सामान है ,कही पढ़ा था अंग्रेज सरकार के राज में दुसरे विश्वायुद्ध में वर्मा में हिन्दुस्तानी सैनिको के बलिदान में उनके कबर पर लिखा था , हमने आप के आने वाले कल के लिए अपना आज कुर्बान कर दिया , पंछी को सोने का पिजरा किस काम का , फिल्म अपने का गाना याद आता है अपने तोह अपने होते है , फिर भी दिल से बेईमानी नहीं हो सकती , पंछी को सोने का पिजरा रास नहीं आता , सायद फिल्म ३०० यही दरसाना चाहती है ,
सच्चा देश भक्त हर सेकंड मिनटमें नहीं पैदा होते , शहीदों को प्रगति मिलती है , लोक में ही नहीं परलोक में भी सम्मान मिलता है , इसका ये मतलब भी नहीं की आ बैल मुझे मार ,
देश के परिवार के सामने अपने परिवार की क्या बिसात ?
ब्रह्माण्ड गुरु कृष्ण अर्जुन से कहते है , पुरुषार्थ से विजय में सुखो का भोग और वीरगति में मोक्ष से स्वर्ग का भोग करो , हे अर्जुन अपना कर्म करो , फल की चिंता न करो ,तुम्हारा योगदान ब्यर्थ नहीं जायेगा ......आज के परम वीर विजेता ही अर्जुन है , रक्षक सर्वश्रेष्ठ होते है , हे अर्जुन अपने आने वाले समाज को दिसा दो ,सत्य अटल है , परन्तु मई तुम्हारे साथ रहूगा .........
किसी कवी की ये दो पंक्तिया कहना ज़रूरी है ,
जो भरा नहीं है भावों से ,जिसमे बहती रसधार नहीं
वो ह्रदय नहीं पत्थर है ,जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं
देश भक्तो की कोई जात नहीं होती न कोई श्रेणी होती है ,फिर भी मेरे आदर्श देश भक्त नेता जी सुभाष चन्द्र बोस है
हमारे देश भक्त नेता जी जैसा जवान देश भक्त सायद देश में नहीं था , सायद किसी अंग्रेज अफसर ने कह ही दिया सुभाष तो विश्व का लीडर है ,
और वही सुभाष जिनकी भाषा सुन्दर ही नहीं श्रोतो से भी परम साबित हुए ,
उन सभी सहीद और नेताजी के लिए मेरे ये दो बोल ,
पूरी हस्ती मिट गयी समय से रंग बदलते बदलते ,
अभी चलता हु ,फिर मिलुगा चलते चलते
इन्तहा ,अंजाम,आवाज ,रह गयी ढलते ढलते ,
अजूबा यही उनका कारवा आज भी है ,धड़कते हुए कही न कही मचलते मचलते
म.कॉम ,२०१०

चमक

दोस्तों मेरा एक छोटा प्रयाश है कहानी लिखने का .....इसका विषय चमक रखा है , दूर दराज के सफ़र में अधिकतर लोग रेलगाड़ी में सफ़र करते है , ऐसे ही सफ़र में दो यात्री मिले केवल भासा से पहचान भासा कहे या अपनत्व बात समय काटने से सुरु होकर आगे बढती गयी सायद ही अगल बगल वाले समझ पाते हो , बातो के दौर में एक ने कहा वह व्यापारी है , दुसरे ने कहा वह नौकरी की तलाश में गाव से अगले पड़ाव पर जा रहा है , बाते कहे या मोह्पास खिड़की के पास से भागते पेड़ पौधे ,हवा के झौके, दरिया , मानव ,मकान , रोड , नदिया , आकाश , जानवर खेत खलिहान और पटरियों के खड खड सायद इसी से खडकपुर का नाम पड़ा होगा ,झटके से हल्का झूलता सरीर ,के बिच , सहर , बाल बच्चे आदि की एक तरफ़ा बाते चलती रही ,किसी के मोबाइल से सायद कोई फिल्म दिल ही दिल में का गीत बज रहा था ,भरोसा व प्यार वाले मर ही जाते है ,व्यापारी ने कहा वह थोडा हल्का होने जा रहा है , थोडा समय लगेगा कृपया उसके बैग का ध्यान रखे ,कुछ देर आराम की तलाश में ग्राम वासी का पैर व्यापारी के बैग से जा टकराया उसमे कुछ ठोस होने का अहसास हुआ , न चाहते हुए भी उसने बैग को खोलकर देखा उसमे कुछ चांदी की ईटे थी , कुछ सोने के जेवर , और कुछ पैसे थे , अब ये पल ग्राम वासी के लिए भारी हो गया , उसके मन में तरह तरह के विचार चलने लगे ,वीचारो की आन्धिया चलने लगी आतंरिक पिपासा जाग उठी वह सोचने लगा यदि मई यह धन ले लू तोह मेरी सारी गरीबी दूर हो जाएगी , बच्चो को अच्छी पढ़ायी हो जाएगी , उन्हें अच्छा जीवन मिल जायेगा , कर्जदारों के क़र्ज़ भी चूका दुगा ,क्यों न मै ये बैग लेकर ट्रेन से कूद जायु , अरे अब तोह ट्रेन भी रुक गयी है ,कही ये पाप तोह नहीं है ,और ये आमिर कौन से सरीफ होते है ,गरीबो का खून चूसते है ,और कोई मुसीबत आयी भी तोह मै क्यों ज़िम्मा लू ,मै संभाल लुगा , कह दुगा मेरा स्टेशन आ गया था , और भी तरीके है निपटने के , और उसकी माली हालत भी ठीक हो जाएगी ,उसने देरी न करते हुए तुरंत बैग को कस कर पकड़ा उठा और एक झटके में बैग को वही छोड़कर रेल से ,अपनी भूख अपने पुराने गमछे के साथ व पुरानी घडी को देखते तेज़ी से अपने रास्ते को बढ़ जाता है , उसके अन्दर के सैतान ने उसे बेवकूफ कहा , परन्तु फ़िर भी उसका माथा चमक रहा था ,........... 

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

कभी देखा है - सब चलता है भाई !!!!!



आज भी लोग मस्ती में स्कूटरों पर चलते है , यदि तेल की कमी से रुक गया तो बेचारे को लोटा कर तब तक मारेगे जब तक चिल्ला कर दौड़ने न लगे , कुछ लोग रोड पर ऐसे चले गे मानो हट जाओ तोप ले कर आ रहा हु , क्या करे ब्रेक ही सही नहीं लगती , लोग जल निगम की टोतिया खोल लेगे अहसान में लकड़ी की गुल्लिया थोक देगे मानो कह रहे हो साले कब आता है , कब जाता है ,बता दिया कर और ज्यादा चिल्लाया मत कर , तरस खाकर कोई फिर नयी टोंटी लगाता है तोह झगदुवा उसे फिर वही बेच देता है जहा से आया था ,भाई यहाँ कारन क्या है , सडको पर गड्ढे दीखते नहीं इसलिए पिच्च से लाल रंग का नोटिस बोर्ड चिपका दिया जाता है ताकि कुछ दिखे कुछ लोग वैध तो कुछ अवैध करते है , कुछ लोग कार्यालयों में बारहों मॉस होली खेलते है मजाल है कोई कुछ पूछ ले तुरंत स्प्रे कर देगे , और गप्पबाज़ी से अच्छा है घाघ बनना ,खोपडिया कौन खाली करे , इस तरह कोई आरोप भी नहीं लगाएगा कुछ सभ्य नागरिक खुले गटर में बिना झंडे का डंडा लगाकर अच्छा काम करते है ,ताकि गंगा स्नान से अन्य बच जाये वैसे गंगा जी का पानी बहुत ज्यादा इससे अलग नहीं है , एक बार गंगा जी में दुबकी लगाने पर एक बच्चे ने खुजली की सिकायत की तो माँ ने कहा ऐसा नहीं कहते बेटा गंगा मैया गुदगुदी करके तुम्हे असिर्वाद दे रही है ,परेशानी पर यदि पर्यावरण परेसान करे तो कुछ लोग नाक दबाकर बाहर भागते है , कुछ लोग सान से दीवाल के पीछे खड़े मिलते है , कुछ लोग अजीज आकार दीवाल पर लिख भी देते है देखो यहाँ गधा मूत रहा है , आप ही सही कुछ तोह सिखा रहे हो , विकल्प तोह तलासना ही पड़ेगा , सायद मै पढ़ लिखकर कुछ उखाड़ लू -पहले ही कितने चालाक भैया लोग बैठे है ,किसी ने पुछा नासा क्या है मैंने कहा जो सब कुछ नास कर के आता है वही नासा है ...................m. com . 2010