गुरुवार, 4 नवंबर 2010
दुर्वासा ऋषि
दुर्वासा ऋषि एक अत्यंत क्रोधी ऋषि थे ,श्राप इनके मुख पर रहता था ,जीवन में केवल कुंती के आतिथ्य -सत्कार से प्रसन्न होकर इन्होने
एक मंत्र दिया ,जिससे वो किसी भी देवता का आहवान कर उसके दर्सन से उसके अंश को जन्म दे सकती थी ,इन्होने कौतुहल और मंत्र की शक्ति को देखने के लिए ,सूर्य देव के मंत्र पढ़ा परिणाम स्वरुप सुर्यपुत्र कर्ण का जन्म हुआ ,जिन्होंने उसे अविवाहित होने के कारण कर्ण का त्याग कर दिया , बाद में उन्होंने जंगल वास में अपने पति पांडु के शापित होने पर ,देव धर्मराज के मंत्र से युधिस्टीर, वायुदेव के मंत्र से भीम ,इन्द्र देव के मंत्र से अर्जुन , और पांडु की दूसरी पत्नी को मंत्र द्वारा देव वैध अश्विनी कुमार के मंत्र से नकुल -सहदेव को पुत्र रूप में प्राप्त किया ......
आज हिन्दू धर्म का पर्व दीपावली भी है ...दीप और प्रकाश का पर्व श्रीराम विजय और अपने राज्य वापसी से होता है ,आज के दिन सृष्टी पर अपनी कृपा दृष्टी रखने वाली ,समुद्र मंथन से उत्पन्न १४ रत्नों में से एक माता लक्ष्मी की कृपा के लिए भी पूजा होती है .....
लेखक ; - एम् .कॉम २०१० ....एक आराधक
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