गुरुवार, 2 सितंबर 2010

अब तो जागो



























































दोस्तों इस लेख को मैंने पहले लिख दिया था ,पर अब उचित समय आ गया है ,पृथ्वी को ब्रह्माण्ड में हवावो का ग्रह माना गया है ,जो नीला दीखता है ,कितना खूबसूरत है हमारा ग्रह , नारंगी जैसा यही कहते है ,न वैज्ञानिक ....इस नारंगी को सडा कर पिलपिला न करो .......५ जून को ham paryawaran diwas ke roop में bhi
manate है ,
पर्यावरण परि+आवरण से मिल कर बना है ,मतलब हमारे आस पास का मिलना या वातावरण ही पर्यावरण है ,
यदि इसे हम साफ़ सुथरा रखेगे तो ,निरोगी ,व स्वस्थ्य ,सुलभ जीवन जी सकेगे ,
क्यों की एक पिन किल की नोक भरी भरकम वाहन को पंचर कर देती है ,
आज हमारी मनमानी से हमारी ओजोन परत सुरक्षा छतरी भी हमारा साथ छोड़ रही है ,परिणाम सभी जानते है ,
भू जल जो अमृत है ,गिरते स्तर के साथ ये सहरो में दुर्लभ हो जायेगा ,
नदियों में लग रहा है ,मूल जल से ज्यादा गंगा में २६ सहरो के नाले २५० प्रत्यक्ष ,अप्रत्यक्ष ,रूप से गिरते है ,
वाराणसी मोक्ष नगरी में एक पेपर समाचार पत्र के अनुसार ३०० टन राख और २०० टन अधजले शव वर्ष में पानी में गिर कर उन्हें और भी प्रदुसित कर रहे है ,
औसत में सुद्ध पानी ३० % और असुध पानी ७० प्रतिसत हो गया है ,यानि परीक्षा में फेल ,
कहते है गंगा पाप हरती है ,यदि आप एक गिलास के पानी में नमक या चीनी झोलते जाये तो एक समय में वह भी नहीं घुलता ,ठीक इशी प्रकार गंगा जी अब हमारे पाप नहीं हरती ,जब तक जल पीने योग्य न हो ,
हमारे फैलाये ,कूड़े करकट प्लास्टिक बरसात में नदियों में मिल जाते है ,आने वाले समय में नदी नदी न होकर नाले भर रह जायेगे ऐसा अभी से लगने लगा है ,कई नदिया इस श्रेणी में आ भी चुकी है ,
जमाना कहा से कहा गया पर हम हरिश्चंद्र के ज़माने पर ही विश्वास रखते है ,
इसी तरह प्रदुषण और वृक्ष का अन्धादुन्ध कटाई जारीरही तो आसमान से आग बरसेगी और ज़मीन से रोग निकलेगे , चापाकल और कुवो से आर्सेनिक निकलेगा ,मनुस्वो के लिए मलेरिया ,पीलिया ,का बाप बहेलिया आएगा जो प्राण पखेरू ही पकड़ ले जायेगा , प्लास्टिक की थैलिया भले ही मनोवैज्ञानिक खुसी देती है ,पर ये मरते मरते भी मारती है ,हर वर्ष वर्षा के साथ कितनो टनों कचरे जो हम फैलाते है ,नदियों ,तालाबो ,जल में ,खेत में पशु से होकर पुनः हमें मिलता है ,जो आयुर्वेद के १०० साल के स्वस्थ्य जीवन को ग्रहण लगा देता है ,
इसका उदहारण मरते चिल ,गिद्ध ,गौरया ,मोर ,आदि है ,यही हाल रहा तो आगे इनके जीवाश्म ही सेष रह जायेगे ,
प्लास्टिक सस्ता तो है ,पर पर्यावरण को बहुत महंगा साबित हो रहा है ,और ये प्लास्टिक केवल ब्याक्तिगत ही सस्ता है ,यहाँ सभी लोग स्वार्थी जो है ,
यदि हम पर्यावरण की रक्षा नहीं कर सकते तो ,हम तो मज़े से जी लेगे पर हमारे बच्चो के बच्चो पर जो गुजरेगी वो नरक से कम नहीं होगी ,भविष्य में और भी समस्याए आयेगी और नए नए रोग भी आयेगे , .....
समझदारी यही है ,की परिणाम को हल न करो ,समस्या ही न पैदा होने दो ....
एक कहावत भी है ,एक सुरक्षा लाख नियामत ....इलाज से अच्छा बचाव है ........
आज १६ सेप्टेम्बर है , विश्व ओजोन सुरक्षा दिवस है , अतः ग्रीन gaiso का उत्सर्जन कम हो ,इन्हें रोको ....
अग्नि ,हवा ,जल ,पृथ्वी ,आकाश ,को यदि हम सुरक्षित नहीं रखेगे तो ये हमारे अन्दर भी है ,तुम्हारा विनाश हो जायेगा ,
जब आकाश से आग बरसेगी तो ये वृक्ष ही हमें बचाए गे ,वृक्ष लगभग सभी धर्मो में पूजनीय है ,हिन्दू इसे पंचवटी ,यानि पांच वृक्ष एक साथ होते है .कहते है ,ये भी मोक्ष के रास्ते है ,वृक्षो में वट वृक्ष सर्वोपरी है ,या श्रेस्ठ है ,मान्यता है ,ये समाधिस्त ऋषि है ,इनको काटना पाप है ,वेदों के अंग आयुर्वेद में यही वनस्पति और प्रकिती चिकित्सा है ,ये वृक्ष ही हमें रात को भी प्राणवायु देते है ,...................
सभी शहरों के नालो को सोधित किया जाये ,यन्त्र लगाये जाये ,
प्लास्टिक की जगह कागज़ के थैले प्रयोग हो ,जूट ..पटसन ...नारियल की रस्सी या उपयोग हो
रसायन की जगह जैविक खाद प्रयोग हो ..नीम आदि
वर्षा जल से ही भू जल संरक्षित किया जा सकता है .....अतः अपने तालाब कुण्ड को साफ़ और बचा कर रखो इनका महत्वा ही इन्हें पूजनीय बनता है , हिन्दू धर्म और सिख धर्म गवाह है ,
अपने प्राचीन तालाब ,को पाटने से रोको तभी भू जल को सुरक्षित किया जा सकता है ,
परन्तु यहाँ उल्टा हो रहा है ,
अभी हाल ही में चित्रा जहाज मुंबई में न बचा सके ,और न उस पर ka धन और न पर्यावरण तीनो ही नहीं बचे ,
कम्पनी पर जुरमाना लगा दो ,
प्लास्टिक ,बजबजाते नाले ,कूड़े -करकट ,इनसे चाहे बिज़ली बनावो ,सड़क बनावो ,या खाद बनावो ,पर इनसे मुक्ति दो या विकल्प तलासो ,अंत में यही की ,खतरनाक रसायन ,गैसों , कित नासक , अपने देश में न लावो ,भोपाल गैस कांड से सिख लो ,, भूमि ,जल .वायु ,पृथ्वी ,आकाश ,जिससे हमारा औचित्य है ,इन्हें प्रदुसित न करो ....रसायन ,विकिरण ,गन्दगी ,मानव स्वार्थ से इन्हें बचा कर रखो ,इनकी सुरक्षा में लापरवाही न करो , जानकारी होना आवश्यक है , विकल्प होना धुन्धना ज़रूरी है ,
सारे उद्योग ,कंपनी ,कारखाने ,का एक ही लक्ष्य है ,अधिक से अधिक धन कमाना ,चाहे किसी कीमत पर ,चाहे पर्यावरण तहस नहस ही हो जाये ......तुरंत चिन्हित कर ताला लगा दो .....जो भि विभाग से हो ....
ज़रूरत है , जनता ,प्रतिनिधि ,को ज्ञान देकर ,कड़ा नियम बनाकर ,समस्या का विकल्प तलास्कर ,ज़रूरी कदम उठाना है ,अतः तन ,मन ,धन , से ही समर्पण भाव से ही पर्यावरण की रक्षा हो सकती है ,मै कहता हु ,दुहो पर निचोड़ो नहीं .....वरना फिल्म प्रलय २०१२ जैसा हाल हो सकता है ....होगा ....या कही कही हो रहा है ....?
आज १७ सेप्टेम्बर , दिन शुक्रवार है ,आज देव शिल्पी विस्वकर्मा जी की पूजा है , भारत में जो भि शिल्पकार है ,आज अपना कार्य बंद कर इनकी आराधना करते है ,और अपने औजार , सामान ,आदि की पूजा करते है ,
तो आज हम कसम ले की हम अपने ग्रह-गृह पृथ्वी को तराश कर ,सजा कर ,और बना कर अपने अगली पीढ़ी को उपहार में दे .......जय भारत
पर्यावरण के लिए ...
सुखी धरती करे पुकार
वृक्ष लगावो करो श्रींगार
पर्यावरण से कर लो प्यार
यही है ,मानव का घर ,संसार .....
लेखक :- एक कारगार आवाज़, आगाज़ की दरकार .....एम् .कॉम। २०१०








कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें