वैसे तो वचन और आशीर्वाद अपने अपने जगह है पर ,पर कही न कही एक के आधार पर दूसरी की अहमियत है ,
बात कुरुक्षेत्र की है ,युद्ध के लिए दोनों तरफ सेनावो का तुमुल जुटाव था लडाई धर्म और अधर्म की थी ,दृश्य देखकर अर्जुन ,कृष्ण से कहते है केशव क्या मुझे यही दिन देखना रह गया है ,
कृष्ण कहते है , पार्थ युद्ध तो आखिरी विकल्प होता है ,युद्ध रणभेरिया बजने में देरी थी ,
अब अर्जुन का मोह भंग होने से अर्जुन अजय प्रतीत हो रहा था ,अर्जुन कहता है केसव मै युद्ध के लिए तत्पर हु ,
श्री कृष्ण कहते है ,पार्थ तुम कुछ भूल रहे हो , जिसके बिना तुम्हे युद्ध विजय नहीं मिल सकती ,अर्जुन कृष्ण के कथन को समझ जाते है ,और और पैदल ही विपक्षी सेना की तरफ चल पड़ते है ,दुर्योधन आदि को ससंकित अंदेसा होता है ,वह कौरव की सेना में जाकर गुरु ,क्रिपाचार्य ,द्रोणाचार्य ,और पितामह भीष्म आदि आदरणीय लोगो का आशीर्वाद लेते है ,
भिसन रक्तपात से युद्ध समाप्त होता है ,कौरव का विनाश हो जाता है ,कृष्ण गांधारी से मिलते है ,एक माँ के हृदय की ममता जाग उठती है ,वह कृष्ण को कोसने लगती है ,कहती है क्या मेरे सभी १०० पुत्र अधर्मी थे ,तुम केवल खून बहते हुए देख सकते हो अपना खून बहा नहीं सकते ,युद्ध की तरह गांधारी के सभी अभिशाप को वह श्री कृष्ण सहर्ष स्वीकार कर लेते है ,
कहते है समय आएगा तो ,अपना खून भी बहा कर दिखा दुगा ,,,माँ सरस्वती मेरा साथ देना ,,,
लेखक :- पक्षपाती , एम् कॉम २०१० विद्यापीठ ,वाराणसी ,विश्वा विद्यालय .................अन्य ड्राफ्ट
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