गुरुवार, 2 सितंबर 2010

दया

बात वर्धमान के ज़माने की है ,वर्धमान भगवान् महावीर को कहते है ,वह अपने अन्दर की प्रेम उर्जा जीवो पर लुटाते रहते थे ,
दुखी को स्पर्श करते ,
उसी समय में एक पुरुषार्थी ,पराक्रमी ,न्यायप्रिय राजा, मृत्यु को प्राप्त होते है ,वह दुसरे लोक जाते है ,तो वहा न्याय किया जाता है , तो उन्हें आदर सम्मान के उपरी पंक्ति में नहीं रखा जाता ,
तो राजा नाराज़ हो जाते है ,कहते है मैंने धन ,बल ,सभी तरह से जीवन भर भला कार्य किया है ,फिर ये भेद भाव कैसा और क्यों ,

तब समय देव राजा को ,फिर से उसके जिए काल में ले जाते है ,
और जगह -जगह उसके मंसा ,फल ,अभिमान ,और स्वार्थ युक्त कर्म को संक्रमण कहते है ,राजा लज्जित होता है ..
क्रमशः .............





केशव अपने गुरु जनो के श्री चरणों में समर्पित करते है .......



लेखक :- ह्रदय से प्रेम -दया -परम प्रेम की तलाश में ....एम् कॉम पूर्ण ...विद्यापीठ विश्वविद्यालय ,वाराणसी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें