शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010
जीयो और जीने दो ........
जानवर तो अपनी जगह है , परन्तु मनुष्यों को उनकी जगह लेने से उनको ही नहीं समाज को भी खतरा उत्पन्न हो गया है ,मानव इंसानियत भूलकर जानवर होता जा रहा है ,स्पेन वाले सांड को खेल बनाते है और निर्दयता से मार डालते है ,अफगानिस्तान में बुजकशी खेलते है , पकिस्तान में जिबह करते है , हिंदुस्तान में बलि देते है ,अन्य पछिमी देश गाय के दूध से मन नहीं भरता , मांस के लिए मार देते है ,भारत में कामख्या देवी मंदिर बलि स्थानों में सर्वोपरि है , यहाँ देवी को बलि देते है , ये सब देखने में हृदय विदारक हो सकती है ,
आज के इस समाज में ये ,ये पुराने खेल उचित नहीं है ,आज भी देश में इनके प्रति कानून का टोंटा लगा है ,हो भी क्यों न यहाँ आदमी की ही फिकर मुस्किल है जानवरों को कौन कहे ,
हम सभी इश्वर की संतान है ,इश्वर के नियमो को गलत ढंग व परीक्षा के ज्ञान सन्देश को जनता अलग गलत विकृत तरीके से चयन कर रही है ,करे भी क्यों न वो धरती पर सबसे बुद्धिजीवी जो है , और उसे अधिकार है परमात्मा के नियमो को चुनौती देने का ??
जब हम जीवन दे नहीं सकते तो ,लेने का अधिकार कहा से है ?,हम उसकी बनायी संतान को दुःख देकर इश्वर को दुखी करते है ,
प्रभु यशु जो त्याग,करुना ,के देवता है ,जीव को दुखी न करो ,परमात्मा तुम्हे इसकी सजा देगा ,इशसे अनजान न बनो ,
प्रभु यशु एक खेल प्रेमी हिन्दू देवता से खेल खेलते है ,नियम और शर्त निर्धारित होते है ,हिन्दू देवता खेल अनुसार उन्हें कस्ट पहुचाते है ,परन्तु प्रभु यशु उन्हें लज्जित करते है ,और अपने वसूल पर खरे उतरते है ,और कस्ट पहुचने के कारण हिन्दू देवता के पुन्य उर्जा फल को खीच लेते है ,और बाज़ीगर बन जाते है ,
हिन्दू देवता उन्हें वचन बद्धता और सतर्कता सिखाते है ,
और प्रभु यशु कहते है जब तुझे भी दुःख दर्द होता है या होगा तो तू दूसरो को दुःख दर्द क्यों देता है ?..........म.कॉम। २००९-१०
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