मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

दो शब्द देश के प्रति ....देश प्रेमियों


स्वतंत्र देश जो मानव की सांस है , देश यह सब्द ही नहीं एक देवी और देवता के सामान है ,कही पढ़ा था अंग्रेज सरकार के राज में दुसरे विश्वायुद्ध में वर्मा में हिन्दुस्तानी सैनिको के बलिदान में उनके कबर पर लिखा था , हमने आप के आने वाले कल के लिए अपना आज कुर्बान कर दिया , पंछी को सोने का पिजरा किस काम का , फिल्म अपने का गाना याद आता है अपने तोह अपने होते है , फिर भी दिल से बेईमानी नहीं हो सकती , पंछी को सोने का पिजरा रास नहीं आता , सायद फिल्म ३०० यही दरसाना चाहती है ,
सच्चा देश भक्त हर सेकंड मिनटमें नहीं पैदा होते , शहीदों को प्रगति मिलती है , लोक में ही नहीं परलोक में भी सम्मान मिलता है , इसका ये मतलब भी नहीं की आ बैल मुझे मार ,
देश के परिवार के सामने अपने परिवार की क्या बिसात ?
ब्रह्माण्ड गुरु कृष्ण अर्जुन से कहते है , पुरुषार्थ से विजय में सुखो का भोग और वीरगति में मोक्ष से स्वर्ग का भोग करो , हे अर्जुन अपना कर्म करो , फल की चिंता न करो ,तुम्हारा योगदान ब्यर्थ नहीं जायेगा ......आज के परम वीर विजेता ही अर्जुन है , रक्षक सर्वश्रेष्ठ होते है , हे अर्जुन अपने आने वाले समाज को दिसा दो ,सत्य अटल है , परन्तु मई तुम्हारे साथ रहूगा .........
किसी कवी की ये दो पंक्तिया कहना ज़रूरी है ,
जो भरा नहीं है भावों से ,जिसमे बहती रसधार नहीं
वो ह्रदय नहीं पत्थर है ,जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं
देश भक्तो की कोई जात नहीं होती न कोई श्रेणी होती है ,फिर भी मेरे आदर्श देश भक्त नेता जी सुभाष चन्द्र बोस है
हमारे देश भक्त नेता जी जैसा जवान देश भक्त सायद देश में नहीं था , सायद किसी अंग्रेज अफसर ने कह ही दिया सुभाष तो विश्व का लीडर है ,
और वही सुभाष जिनकी भाषा सुन्दर ही नहीं श्रोतो से भी परम साबित हुए ,
उन सभी सहीद और नेताजी के लिए मेरे ये दो बोल ,
पूरी हस्ती मिट गयी समय से रंग बदलते बदलते ,
अभी चलता हु ,फिर मिलुगा चलते चलते
इन्तहा ,अंजाम,आवाज ,रह गयी ढलते ढलते ,
अजूबा यही उनका कारवा आज भी है ,धड़कते हुए कही न कही मचलते मचलते
म.कॉम ,२०१०

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