ईर्ष्या कोई नयी बीमारी नहीं है ,इसका जन्म बहुत पहले ही हो चूका था ,रामधारी सिंह दिनकर की कृति ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से तो पढ़ा ही होगा ,ईर्ष्या सदा कमजोर ही करते है ,जिसे ब्रहमांड शिक्षक कृष्ण ने साबित किया , द्वापर में कृष्ण की बढती प्रसिद्धी, गुरु पुत्र वापसी हेतु बलराम संग हाथो में हाथ लिए समर्पण व भावना से बलराम संग मानस भौतिक रूप में यमपुरी विजय ,ब्रह्मा का मान मर्दन ,इन्द्र का गर्व खंडित करने से छोटी उम्र के उनकी यश कीर्ति से विष्णु भी अंजान न रह सके ,साथ में विष्णु के मनोभाव को पिता की तरह विशाल हृदय माँ लक्ष्मी ने पढ़ लिया ,
माँ लक्ष्मी ने कहा प्रभु ,कृष्ण भी तो आप ही के संतान है ,तब भगवान् विष्णु ने कहा हे देवी मेरे अन्दर यह षडिक (बहुत थोडा )इर्ष्या जन्म हुआ कैसे ,जब की मै जग कल्याणकारी गंगा के सानिध्य में रहता हु ,देवी ने कहा देवी गंगा तो अपना दायित्व वहन ही तो कर रही है ,अतः यह सब बढ़ते पाप का असर है ...................??...प्रेषक .इंडियन ,म.कॉम.२ 2010
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें