मंगलवार, 11 जनवरी 2011

गौतम बुद्ध -दर्द और शांति-1

गौतम बुद्ध ,बचपन में सिद्धार्थ नेपाल के लुम्बिनी में राजघराने में जन्म जन्म से कोमल ह्रदय ,किशोर अवस्था में शादी के बंधन ,सारे सुख सुविधा बाद भी स्वयं को राजमहल के चारदीवारी के पार जाने की इच्छा ,क्यों की उनके माता पिता चार दिवारी के पार बाहर नहीं जाने देते थे ,क्यों की अनेक ज्योतिषियों ने उनके एक महान साधु या राजा होने की भविष्य वाणी कर राखी थी , राजा तो वो थे ही ,साधु होने का डर था , एक बार जिद कर वो रथ से नगर भ्रमण को गए ,कोई रोगी ,कोई वृद्ध ,कही पीड़ा ,कोई गरीब ,उन्होंने संसार के इस रूप की कल्पना भी नहीं की थी ,ज़िन्दगी तुच्छ लगने लगी ,और एक रात अपना सभी कुछ राज पाठ अबोध बेटा ,पत्नी ,त्याग कर ज्ञान -शांति प्राप्ति की राह पर चल पड़े ,ज्ञान शांति की राह में लगभग पूरा गला-जीर्ण शरीर , परन्तु मध्यम मार्ग के सिद्धांत से पुनः उर्जा प्राप्त की ,तथा ज्ञान प्राप्ति की राह पश्चात वाराणसी के सारनाथ में अपने ५ शिष्यों को सर्वप्रथम ज्ञान -उपदेश दिया , आप उनकी सिद्धार्थ की बचपन की कहानी तो जानते ही है ,पक्षी बचाना से लेकर तथागत बनने तक ,प्राचीन काल में हिन्दू भी मुड़े सर और भिक्षा मांग कर ही शिक्षा ग्रहण करते थे , आईये जानते है ,जब वो सुख की चारदीवारी से बाहर निकले तो क्या हुआ ,गौतम बुद्ध को सारे दुखियो का दर्द अपने ऊपर सारे संसार का दर्द उन्ही के ऊपर सिमट आया था ,गौतम बुद्ध को जगत के दुःख -दर्द में अपना दर्द -तड़प महसूस होने लगा ,बहुत भारीपन ,घोर नीरसता ,उनको अपनी स्वयं की ज़िन्दगी भारी तुच्छ लगने लगी ,चारो तरफ दुःख -दर्द फिर संसार में अन्य लोग खुश कैसे रह सकते है ,? उनके अन्दर असह्य पीड़ा -दर्द , उनका चित्त ब्याकुल रहने लगा ,एक परमात्मा ये भेदभाव कैसे कर सकता है ,अपने प्रिय ही को कोई दर्द में मृत्यु पर कैसे देख सकता है ,? तब उन्होंने ज्ञान से दर्द को जीता ,दया ,प्रेम ,त्याग , को ध्यान देकर ज्ञान प्राप्ति से सारे तथ्यों को जाना तो जा सकता है ,? पर जो शरीर के अन्दर मन मस्तिस्क दिल का दर्द उठता है ,उसे कैसे ख़त्म किया जाय वह सिर्फ ज्ञान से नहीं ख़त्म हो सकता ,तो एक ही मार्ग है ,जो दुःख दर्द है ,उसे स्वयं अनुभव करो ,महसूस करो ज्ञान महसूस,तप आत्म शुद्धि ,दोनों का

सहयोग ही गौतम बुद्ध को भगवान बना दिया ,

उन्होंने पहले दुःख -दर्द का अनुभव किया तथा परमात्मा से दुसरो के कस्टो को दुःख को दूर करने के लिए ज्ञान को प्राप्त किया ,हमारे स्वयं के बस में कुछ नहीं होता ,क्यों की हम स्वयं अपने अस्तित्वो को सच्चे अर्थो में नहीं जान पाते है ,अतः तप से ही जीवन का वास्तविक अर्थ समझा जा सकता है , ज्ञान प्राप्ति ही सब कुछ नहीं होती ,या सब कुछ नहीं है ,ज्ञान का सामयिक ,सामाजिक हित ,प्रयोग ,और मन में गजब की शीतलता देवतुल्य भगवान गौतम बुद्ध बना सकती है ,तभी शांति मिलेगी ,

सत्य और शांति ;- अर्थात ज्ञान और राहत के प्रकाश को कोई डिगा नहीं सकता ,सूर्य प्रभावित करता है ,प्रभावित नहीं होता ,उसे कुछ देर का ग्रहण लग सकता है ,बादल भी आँख मिचोली खेल सकते है ,पर वह ज्यो का त्यों रहता है ,जीवन के लिए ,

अपना दीपक स्वयं बनो इसकी रोशनी सदा साथ रहेगी ,इस ज्ञान, शांति के पश्चात सारे दुखो चाहतो का अंत संभव है , एक बौद्ध भिक्षुक का मुड़ा बालो रहित सर मानो गवाही देता है ,इस ज्ञान -शांति पश्चात अन्य ज्ञान -शांति की ज़रूरत नहीं ,अहंकार का संपूर्ण परित्याग ,मिथ्या ,छलयुक्त ,आनंद सहित ,खुशियों -छलावो से दूरी हो ,

दीपक ही उजाला रोशनी प्रदान करता है ,जब अन्दर से आभा की किरण जागृत हो गयी तो फिर बाहर का स्वांग कोई मायने नहीं रखता ,वह एक ढोंग ,बनावटी लगने लगेगा ,अँधेरे को उजाले से दूर किया जा सकता है ,पर उजाले को अँधेरा करना सोचना नहीं पड़ेगा ,ये स्वतः विराजमान है ,हमारे अन्दर भी ,

प्रशन यही है , कि जो बिराजमान है ,मेरा मूल प्रकृति है ,उसके बन्धनों से मुक्त कैसे हुआ जाय ,क्यों कि या हमें छोड़ना नहीं चाहती और हम इसके बिना रह नहीं सकते ,

अपने ज्ञान -प्रकाश -तप से ही अपने सारे काम ,क्रोध ,मद ,मोह ,लोभ ,इर्ष्या ,को दूर किया जा सकता है ,तप हमें पवित्र करता है ,और ज्ञान हमें राह दिखाता है ,

एक दीपक एक बाती और तेल सब कुछ तो है ,हमारे पास ,पर उस दीपक में केवल प्रकाश कि कमी है ,

हमारा शरीर दीपक ,हमारी इन्द्रिया बाती , और हमारी आत्मा दीपक का तेल है ,और प्रकाश ज्ञान है ,

दीपक कि बाती जलती रहे ,और आत्मा रुपी तेल ख़त्म न हो ,

ज्ञान का प्रकाश चारो तरफ राहत प्रदान करे ,ये इन्द्रिया विकार हमें हमारी आत्मा को खोखला बना देती है ,चरम ज्ञान की प्राप्ति पश्चात आत्मा ज्ञान रुपी तेल का क्षय नहीं होगा ,और प्रकाश ज्ञान -तप -शांति के प्रभाव से सतत प्रस्फुटित होता रहेगा ....जाते जाते राजा ,राजकुमार ,वही है ,जो सत्य राह पर चलते हुए मदद करता रहता है ,

भगवान ,तथागत ,गौतम बुद्ध के लिए :-

बुद्ध बनो शुद्ध बनो ,

पापत्याग के लिए रूद्र बनो ,

लोभ के लिए छुद्र बनो

ज्ञानप्राप्ति के लिए क्रुद्ध बनो ,

बुद्ध बनो ,शुद्ध बनो

लेखक :- आप के साथ के लिए

रवि कान्त यादव एम्। कॉम २०१० विद्यापीठ ,वाराणसी ,उ.प.

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