रविवार, 21 नवंबर 2010

बाबा गुरुनानक देव जी

आज २१ नवम्बर को ३ हिन्दू पर्व पड़रहा है ,कार्तिक पूर्णिमा , दीप दान का पर्व देव दीपावली ,आज बनारस के घाटो को सजा कर गंगा में दीप दान को देखते बनता है ,और आज के ही दिन बाबा भगवान गुरु नानक देव जी का जन्म दिन भी है ,जिन्होंने सिख धर्म को गुरुग्रंथ साहिब का ज्ञान दिया ,
वैसे पूरा अक्टूबर -नवम्बर भारत में त्योहारों का महिना है ,हर धर्म में कुछ न कुछ पड़ता है ,हर तरफ त्योहारों की धूम और होड़ मची रहती है ,इन दिनों ताबड़-तोड़ त्यौहार पड़ते है ,कश्मीर से कन्या कुमारी तक बंगाल से राजस्थान तक सभी प्रमुख देवी देवता और पुण्य दान धर्म के पर्व पड़ते है ,हिंदी भाषियों और उत्तर भारतीयों को तो पर्व -त्यौहार से फुर्सत ही नहीं मिलती चाहे नवरात्री हो या सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ ,और आज का दिन , सभी विशेष है ...इन्ही के बीच एक पर्व पड़ता है ,इस दिन आवला के वृक्ष के निचे भोजन बनाया जाता है ,यानि पिकनिक और इसी दिन शरद यानि जाड़े ऋतु की दस्तक मिल जाती है ।
अब कहानी ...बाबा गुरु नानक देव अपने धर्म ,कर्म ,और कर्तब्यो को निभाते हुए एक गाँव गए ,वहा उंनका हर ब्यक्ति ने यथासंभव आदर सत्कार किया ,गाँव के रियासत के राजा भी उनके दर्शन को आये ,उनसे बाबा के पैरो की धुल ,सूखे होठ ,कुछ फटे कपडे ,और हाथो चेहरे पर सिलवटे देखी न गयी ,वह पूछते है ,बाबा आप को क्या मिलता है ,जो ज्ञान ,राह,और परोपकार बाँटतेफिरते है ,आपको मै अपनी सारी सेवा दे रहा हु ,सारे धन दे रहा हूँ ,आप आराम से जिंदगी गुजारे , इस बूढ़े शरीर को आराम दे ,वैसे भी आप के पास धन की कमी नहीं है ,
तब बाबा गुरु नानक बोलते है ,बेटा यही तो बूढ़े सरीर की वास्तविक कमाई है ,और ये मेरा कर्त्तव्य है , ईश्वर के पास जाउगा तो क्या यही कहुगा ,कि मै कामचोर था ,?
रही बात मेरे दुःख -दर्द ,परेसानियो की तो ये तुम्हारे जैसे प्रेमियों से मिलने के बाद स्वत : दुर हो जाती है पुत्र ,....
लेखक ;- बाबा के पुत्र ...वाराणसी (उत्तर प्रदेश ) एम् कॉम .२०१०

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