

गलियों में न जाने कब जर्जर भवन का पत्थर गिर जाये ,या ऊपर से कोई कूड़ा या पानी ही न टपक जाये ,जर्जर तार कभी भी काल बन सकते है ,सीवर ऊपर से बहने की कसम खा चुके है , मोक्ष नगरी में लकडिया पानी से भीगी रहती है ,वजन ज्यादा होगा ,बनारसी ठग मसहूर है , चोर कटो की भर मार है ,पलक झपकते ही लूट लेते है ,
एक एक तीन पहिया ,रिक्शे ,ऑटो ,कई बस में तो इतने बच्चे ठुसे रहते है ,की खूझा भी न सके ,
यहाँ मिनटों में रेडी मेड विजली प्राप्त की जा सकती है , कुछ नहीं बस यहाँ वहा बांस खड़ा किया और काम पूरा ,कुछ लोग के फ़ोन के तार भी बीच से फ़ोन जोड़कर किये जा सकते है ,बिल बदमास नहीं बकायेदार भरेगे ,
उडती धुल ,कड़कती धुप ,कीचड़ ,पानी ,फैले कूड़े ,दौड़ते सुअर , ,गुटखा , पान की रंगत ,आवारा कुत्ते ,आदि इसमें चार चाँद लगाते है ,और प्रेम से साथ निभाते है ,
हम सभी आज़ाद है और आज़ाद आजादी नहीं छिनते ,ये हमारे सड़क ,पार्क ,आदि के साथी है ,
सड़को पर बस घुसते जावो मानो आगे खैरात बट रही हो ,रही बात व्यवस्था और सजगता की तो वह काम प्रसाशन का है ,हम तो सड़क पर बपौती के लिए ही निकलते है ,और गाड़ी बंद कर खूब पेट्रोल बचाते है ,
सड़क और शहर के लिए .....
शहर बना ज़हर ,सड़क की ज़िन्दगी बनी मौत ,
हर तरफ जाम का कहर ,थक गयी आँखों की जौत....
जनता ,सड़क ,प्रसाशन और परेसानी के लिए ...
टूटी सड़के पन-तपन से भीगते लोग ,
चलते भी है ,ऐसे जैसे जनता या सड़को को लग गया कोई रोग
कभी -कभी ऐसा लगता है ,बस सड़क पर ही लग जाये जोग ,
प्रसाशन कहता है ,तू आया सड़क पर इसलिए कुछ तू भी तो भोग
लेखक :- भींड से बचते हुए ........एम् .कॉम .२०१० विद्यापीठ ,वाराणसी ,........ये राही चल चला चल .......
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