शुक्रवार, 13 मार्च 2009
धर्म
धर्म जिसका तात्पर्य ही अच्छे कार्यो के लिए होता है , किसी भी धर्म को सम्मान उस धर्म को और भी महान बना देता है , दुनिया का कोई भी धर्म जोड़ना सिखाता है , जिस धर्म के जितने मानने वाले उसकी उतनी अहमियत होती है , परन्तु सम्मान जो बनावटी न हो ,पर ही सारी बाते ख़त्म हो जाती है
जीवन स्तम्भ
१) ज्ञान
२) sheestachaar या byavahaar teeno को satyug, tretayug,aur dyapar se..........
३) परिश्रम
ज्ञान, byavahaar ,परिश्रम, को हम atit से लेते है jaha गौतम बुद्ध satya व ज्ञान की खोज me niklate है ,
sheetachar मर्यादा pursottam ram की रामायण है,
vahi karm ही पूजा है , bhagwan कृष्ण की amar कथा है , यदि जीवन स्तम्भ नही है to vikalp है जो सभी karyo के लिए होते है ,
२) sheestachaar या byavahaar teeno को satyug, tretayug,aur dyapar se..........
३) परिश्रम
ज्ञान, byavahaar ,परिश्रम, को हम atit से लेते है jaha गौतम बुद्ध satya व ज्ञान की खोज me niklate है ,
sheetachar मर्यादा pursottam ram की रामायण है,
vahi karm ही पूजा है , bhagwan कृष्ण की amar कथा है , यदि जीवन स्तम्भ नही है to vikalp है जो सभी karyo के लिए होते है ,
सोमवार, 9 मार्च 2009
बच्चो का शिक्षक


शिक्षक जो राष्ट्रनिर्माता कहलाता है वह होता है जो ,बच्चो की गतिविधियों को देखता है समझता है , और स्वक्षता की कसौटी पर परखता है ,यदि एक नदी जो जीवन दायिनी कहलाती है ,सही दिशा मिलने पर घरो को रोशन धरती को समृधि और वही दिशा हिन होने पर पीड़ा का कारड बनती है
शिक्षक को नज़र सम्मान की होनी चाहिए यदि नही है तो ,शिक्षक की भूमिका पर प्रश्न चिह्न लगेगे ,परन्तु एक या कुछ के लिए सभी को दुखी तो नही किया जा सकता
शिक्षक को समय समय पर अपनी भूमिका तथा बच्चो की गलतियों के प्रति कर्तव्यों को पुरी शक्ति से लेना चाहिए ,
उदाहरथ ,अतीत ,व बच्चा बनकर भी उन्हें कुछ सिखाया जा सकता है ,जहा तक सम्भव हो ,उनके कार्यो तक ही सिमित व अपने कर्तव्यों का निर्वहन ही शिक्षक की जिम्मेदारी है
कुछ पल ,बाते ऐसे भी होती है ,जो सामूहिक नही किए जाए तो ही ठीक है
गलती सजा तब बनती है ,जब उसमे निरंतरता हो , शिक्षक सभी को साथ लेकर चलता है
शिक्षक अपनी दूसरी छवि को बनाये नही रख सकता तो उसे अपने कर्तव्यो को त्याग देना ही रास्त्र्य हीत में होगा
क्योकि स्वहित सर्वोपरी नही होता है|
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