शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

महात्मा मोहन दास करम चन्द गाँधी के वचन और सीख













महात्मा गाँधी जी का जन्म २ अक्टूबर १८६९ में गुजरात के संब्रिध घराने में हुआ , माता का नाम पुतली बाई और पिता करमचंद गाँधी थे , देश में परतंत्रता के कारन और उच्च शिक्षा के आभाव में १८९३ में द अफ्रीका जाकर वकालत की उची शिक्षा ग्रहण किया , तथा वहा के भारतीय शोषितों के हक़ की लड़ाई लड़ी .....
एक बार गाँधी जी द , अफ्रीका में रेल से यात्रा कर रहे थे ,तो रंगभेद , ओछी मानसिकता और भारतीय होने की हेय
दृष्टी से एक रेल अधिकारी ने उन्हें प्रथम डिब्बे से सामान सहित बाहर फेक दिया ...
परन्तु अपने देश में जो प्यार ,हवा ,जल ,मिला उसकी कमी उन्हें प्रत्येक जगह महसूस हुई ,यही वजह उन्हें देश का स्वतंत्रता सिपाही बनने पर मजबूर कर दिया ,परन्तु उनका रास्ता सबसे अलग था ,विश्व के वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शांति और अहिंसा से अपने देश को आज़ाद करवा दिया ,वो आज़ादी के पहले व्यक्ति है ,जिनके नाम में महात्मा जुड़ा है ,जिसे रास्ट्र गीत रचयिता कवी रविन्द्र नाथ taigor ,ने दिया ,गाँधी जी के तीन बन्दर ,का सन्देश ,बुरा न कहो ,बुरा न सुनो ,बुरा न देखो ,सदियों तक परम सन्देश बना रहेगा ,
जो हिन्दू धर्म के मन ,वचन ,और कर्म के पापो को रोकता है , निंदा न करो ,कटु न बोलो ,बुरे वचन से बचो ,...
उन्होंने दबे कुचले शोषित लोगो को मर्यादा पुरसोत्तम राम की उपाधि दी ,उन्हें हरिजन अर्थात भगवान का पुत्र कहा , भारत की गरीबी देखकर उन्होंने भी गरीबी का पालन किया ,उन्होंने कहा स्वयं के लिए कार्य करो ,आत्म निर्भर रहो ,उन्होंने देश को एक सूत्र में रखा ,देश में कमजोर लोगो की रक्षा की ,देश के पालक की तरह रक्षा की अपना कर्तव्य निभाया इसलिए उन्हें रास्ट्र पिता की पदवी मिली नेता जी बोस ने उन्हें रास्ट्र पिता कहा ...
जिसकी गवाह भारतीय मुद्राए है ,उनकी महानता पर भी उन्हे स्वेदिश अकादेमी द्वारा मिलने वाला नोवेल पुरस्कार नहीं मिला ,क्यों की वो एक भारतीय थे और केवल भारतीयों लिए कार्य किया ,
उनका प्रत्येक समय घडी रखना सिखाता है ,समय की कीमत पहचानो ,सायद इसी लिए उन्हें अपनी ख़राब लिखावट का उम्र भर अफ़सोस रहा ,
उनका सूत काटना ,स्वयं खाना बनाना ,बकरी पालना सिखाता है ,स्व निर्भर बनो , कर्म करो ,खाली न रहो> ॥

उनका साबर मति आश्रम में जीवन हमें सरलता ,और बिलासता रहित जीवन का सन्देश देता है ,उन्होंने गलत नियमो के विरोध में अपना शांति नियम बनाया जिसे आज तक कोई गलत नहीं कह सका ...उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अनेक आन्दोलन किये जो आज भी कारगार है ...उन्होंने तमाम महान विचार भी दिए ...

एक गीत भी है .....दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल ...साबर मति के संत तुने कर दिया कमाल ......................
१९१४-१५ में गाँधी जी द अफ्रीका से भारत आये ,यहाँ भी उन्होंने अंग्रेजो के अत्याचार और जनता के हक़ की लड़ाई लड़ी ....
प्रस्तुत है उनके सिद्धांत और सीख ...
सत्य -अहिंसा :-सत्य सर्वोच्च कानून है ,और अहिंसा सर्वोच्च कर्त्तव्य ,गाँधी जी अहिंसा कायरो का नहीं वीरो का अस्त्र बताते थे , अतः अहिंसावादी वीर होते है , परन्तु कायर न बनो ...श्रम को भी दान बना दिया श्रमदान करो ...
कायर न बनते हुए कर्म करो ...आवाज़ बुलंद करो

सत्याग्रह :-सत्य के प्रति आग्रह ,अहिंसा का पालन करते हुए बुरे व्यक्ति के गलत कार्य का प्रचार करो , उसे जनता तक लाकर उसके कार्य से डिगाना था ,न माने तो उसे हानि पहुचाये बिना , शांति हड़ताल , कार्य बहिस्कार , आदि से विरोध ॥

सविनय :- गाँधी जी का कथन है ,यदि आपसे भूल से एक चीटी भी दब जाये तो आप सविनय माफ़ी मांग लीजिये ...

स्वराज्य :-में उनका मुख्य लक्ष्य अहिंसक समाज की कल्पना ,तथा अपने हित इच्छा वो को दुसरे पर ज़बरजस्ती न थोपना था ...

न्यासिता ;- गाँधी जी कथन है ,यदि आप करोडो कमाते है .और उसे परोपकार में व्यय नहीं करते तो सभी धन व्यर्थ है ,मानव जीवन ही तुच्छ हो जायेगा ....

सर्वोदय ;- गाँधी जी ने अपने रेल यात्रा में अपने मित्र द्वारा दी पुस्तक अन टू दिस लास्ट से प्रभावित होकर यह सिद्धांत दिया की सभी राजा-रंक , काले -गोरे , हिन्दू -मुस्लिम ,उचे -नीच सभी सामान है ,इन्हें हेय दृष्टी से न देखो ,भेदभाव रहित समाज हो , क्यों की इसके ओट में शोषण होता है ,अतः सभी का सूर्य की तरह नया उदय हो और उनका तथा उनके परिवार का पोषण हो ॥


स्वदेसी और खादी;-गाँधी जी की परिकल्पना में स्वदेसी और खादी भी थी ,जो देश को मजबूती देती है ,गाँधी जी का स्वदेसी आज भी है , खादी से आशय सस्ती ,प्राकृतिक ,और रोजगार देना होता है ,पर ये स्वदेसी अपने आस्तित्व की आखिरी साँसे गिन रही है , बड़े -बड़े उद्योगों के लिए सरकार सब कुछ कर रही है ,पर स्वदेसी -खादी के लिए नयी साँसे देना ,नयी विचारधारा के अभाव में ये रुग्ण है, इसको विज्ञानं के ज्ञान ,अनुभव , परिक्षण ,और प्रयोग की आवश्यकता है .....


राजनीति ;-उन्होंने राजनीति को निस्वार्थ लोक सेवा तथा नैतिकता के स्तर पर रखा तथा इसमें तमाम बुराइयों के अतिरिक्त मानव के लिए अनिवार्य है, बताया


आध्यात्मवाद ;-इसकी कल्पना बिना धर्म के नहीं हो सकती ...


आचार संहिता ;- में धर्म .सत्य , ईस्वर , अहिंसा ,साधन की पवित्रता ,आदि का विशेष स्थान है ...
महात्मा गाँधी ने भारतीय समाज में ब्याप्त बुरायिवो पर कठोर प्रहार करते हुए समाज का नव निर्माण करने का प्रयत्न किया ,

उनकी नज़र में भंगी भी उतना ही महत्वा पूर्ण है जितना की एक वायसराय ,
गांवो का विकास हो, विकेंद्री करण हो ,स्वास्थय ,आवास ,यातायात ,उर्जा ,तथा शिक्षा में वृद्धि हो , कृषि तथा क्रिसको का विकास हो ॥
१९३९ में वर्धा में संघ की स्थापना की ,जिसका उद्देश्य शिक्षा देना ,प्रसिक्षण देना था ,
मेरा मानना है गाँधी जी एक बारीक़ दार्शनिक थे

अपने कर्म -धर्म पर चलते हुए, भारत की आज़ादी के बाद ,भारत के अब तक के सबसे बड़े महापुरुष को ३० जनवरी १९४८ को (७८ वर्षीय ) महात्मा मोहन दास करम chand गाँधी को एक हिन्दू धर्म उन्मादी ने गोली मारकर सदी के सबसे बड़े प्रकाश पुंज का अंत कर दिया

गाँधी जी जैसे हड्डियों के ढांचे से और उनकी तरह विचार ,भावना ,जोश ,जज्बा लिए व्यक्ति की ज़रूरत है ,कम से कम कोई उनके संदेसो में जीने वाला ही मिल जाये ,पर अभाव है ,कोई उन्हें सत्य अहिंसा का पुजारी कहता है ,कोई नंगा फकीर तो कोई बापू तो कोई महात्मा कहता है ,
मै अगर उन्हें ईश्वरीय शांति दूत और मानवता का रक्षक कहू तो कोई अतिशयोक्ति न होगी ....
पाप से डरो पापी से नहीं ..

२ अक्टूबर को महात्मा गाँधी जी का जन्म दिवस पड़ रहा है ,,तो गाते है उनका प्रिय और ज्ञान से भरा गीत

वैष्णव जन तो तेने कहियेजे .पीर पराई जाने रे ...

पर दुक्खे उपकार करे तो मन अभिमान न आने रे ......

गाँधी जी के लिए ...

आत्मा ,महात्मा ,परमात्मा को भी गाँधी जी का सन्देश है ,

जहा सत्य ,सदभावना ,शांति , वही हमारा देश है

मनुष्य एक है ,फिर भी अलग अलग वेश है .....

हर कही कोई राजा-रंक कोई साधू -संत कोई फकीर और दरवेश है

जहा सत्य ,सदभावना,शांति , वही हमारा देश है

लेखक :- गाँधी जी के सन्देश वाहक ....




















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