

शिक्षक जो राष्ट्रनिर्माता कहलाता है वह होता है जो ,बच्चो की गतिविधियों को देखता है समझता है , और स्वक्षता की कसौटी पर परखता है ,यदि एक नदी जो जीवन दायिनी कहलाती है ,सही दिशा मिलने पर घरो को रोशन धरती को समृधि और वही दिशा हिन होने पर पीड़ा का कारड बनती है
शिक्षक को नज़र सम्मान की होनी चाहिए यदि नही है तो ,शिक्षक की भूमिका पर प्रश्न चिह्न लगेगे ,परन्तु एक या कुछ के लिए सभी को दुखी तो नही किया जा सकता
शिक्षक को समय समय पर अपनी भूमिका तथा बच्चो की गलतियों के प्रति कर्तव्यों को पुरी शक्ति से लेना चाहिए ,
उदाहरथ ,अतीत ,व बच्चा बनकर भी उन्हें कुछ सिखाया जा सकता है ,जहा तक सम्भव हो ,उनके कार्यो तक ही सिमित व अपने कर्तव्यों का निर्वहन ही शिक्षक की जिम्मेदारी है
कुछ पल ,बाते ऐसे भी होती है ,जो सामूहिक नही किए जाए तो ही ठीक है
गलती सजा तब बनती है ,जब उसमे निरंतरता हो , शिक्षक सभी को साथ लेकर चलता है
शिक्षक अपनी दूसरी छवि को बनाये नही रख सकता तो उसे अपने कर्तव्यो को त्याग देना ही रास्त्र्य हीत में होगा
क्योकि स्वहित सर्वोपरी नही होता है|
बहुत सुन्दर लिखा है.
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ.