





अब हाल यह है , कि दूर दर्शन पर फिल्म में ठाकुर बोलता है ,"ये हाथ नहीं फांसी का फंदा है , गब्बर ," तभी दूरदर्शन कि विजली गुल ...लगता है ,दूर दर्शन बेचारो का अपना इन्वेर्टर भी नहीं है , और फिर टकटकी लगाए दर्शक " ये हाथ हमें दे- दे ठाकुर से फिल्म देखना प्रारंभ करते है " दूरदर्शन सन्देश ये ,देता है .कि कामचोरो जावो काम करो ,इसी लिए देश विकशित नहीं हो रहा .....
एक -एक फिल्म में १० -१५ मिनट के ब्रेक या प्रचार आते है ,एक फिल्म ५ घंटे तक चल जाती है ,वो भी काट -छांट कर इतना विज्ञापन - तो फिर पैसा भी आता होगा ,तो ये पैसा को दूरदर्शन के अधिकारी लूट -खसोट लेते है क्या ?
बंगाली -तमिल फिल्म उत्तर प्रदेश में दिखाई जाती है -नीचे अंग्रेजी में उसका अनुवाद किया जाता है --इससे थोड़ी बहुत अंग्रेजी मज़बूत हो सकती है
शास्त्रीय संगीत पर तो कसम से मज़ा आ जाता है ,लगता है ,अगर टी.वी.न बंद किया तो कही स्क्रीन ही न चिटक -तिड़क कर फूट जाये ,
ता -थई -तक को तकते -तकते पैरो कि रेखा देखकर ,भविष्य बताना तक सिखा जा सकता है ,कुछ कार्यक्रम कसम से ऐसे होते है ,कि कार्यक्रम के लिए न देखकर प्रचार के लिए देखे जाते है ,प्रचार देखकर ही ,मनोरंजन हो जाता है ,कभी -कभी ऐसा लगता है ,हे भगवान् एक प्रचार तो आ जाये ? और नकेल भी ऐसी कि कही भागे तो एक और दूरदर्शन चैनल मिलेगा ,अंग्रेजी -हिंदी समाचार का चैनल ...मानो चिढ़ाकर कहेगा" बच कर कहा जावोगे बच्चू " मै पूछता हु ,हर राज्य व भाषा अनुसार अलग-अलग दूरदर्सन का चैनल है ,फिर रास्ट्रीय चैनल के साथ अत्याचार क्यों हो रहा है ,आप बताये व इसके अधीन मंत्री महोदय ....आप लोग बता भी नहीं पायेगे क्यों कि आप के पास ५०० चैनल है , आई .पी.टी.वी। है ...होम थेअटर है ॥
ये चैनल बना , पैनल ,कोटा के लिए निभाए रोल ...
कही अब्यवस्था, कही नहीं विजली ,विजली आयी तो खुल गयी पोल ...
देखा जो दूरदर्शन तो चित्रपट ,का डिब्बा गोल ...
सिग्नल रहित टी.वी। देखकर थक गयी ज्योति ,क्या खाक तोल मोल कर बोल .....
लेखक ;-चैनल बाज़ ... एम् .कॉम .२०१० ....वाराणसी (उत्तर -प्रदेश )
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