रविवार, 21 अगस्त 2011

मेरा कसूर

पांडव सशर्त वन में थे , दुर्योधन उनकी स्थिति का लाभ उठाने हेतु ,दुर्वासा ऋषि को उकसा कर भ्रमित कर पांडव के आथित्य को प्रेरित करता है ,| दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ ,पांडव स्थल वन को चलते है|

वन में संकट से गुजरने के लिए युधिस्ठिर सूर्य उपासना से अक्षय पात्र प्राप्त करते है,|

वरदान स्वरुप मिले इस अक्षय पात्र की विशेषता यह थी ,कि जो मांजे जाने तक अन्न प्रदान करता था ,द्रौपदी पात्र को धो चुकी थी ,| तथा दुर्वासा के आगमन का समाचार मिलने पर वह ब्याकुल हो उठी ,तथा लाज बचाने को

सखा कृष्ण का ध्यान करती है ,| कृष्ण आ जाते है,और द्रौपदी से वह अक्षय पात्र मांगते है,|

तथा पात्र को ध्यान से देखने पर चावल के एक दाने को लगा देख उसे ग्रहण कर जाते है,वे जानते थे ,दुर्वासा ऋषि अत्यंत क्रोधी है,व असत्य सहन नहीं करेगे वे दुर्वासा ऋषि के पथ में जाकर कहते है,पुरे पात्र के भोजन को मैंने ग्रहण कर

लिया है, विस्वास नहीं तो आप जा कर देख सकते है,|

श्याम द्वारा बोध कराने पर दुर्वासा ऋषि सहित सभी तृप्त हो जल की तरह पानी -पानी हो धरती पर लोटने लगते है,|

यदि आप सभी इन्द्रियों पर विजय चाहते है, तो स्वच्छ शीतल जल बनो इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं है ,| शायद गंगा माता यही सन्देश देना चाहती है,आप सभी जानते है,एक घड़ा कहा से आता है,और कैसे -कैसे

बनता है,| वैसे विज्ञानं का सिद्धांत है, जल सदा उच्च स्थल से नीचे की तरफ गतिज होता है,परन्तु प्यासा सदा

जल की तरफ फिल्म forbidden kingdom में बताया गया है,जल जिसका कोई रंग नहीं होता,कोई स्वाद ,आकार, नहीं होता सबसे कोमल होता है, पर वह बड़े से बड़े पत्थरो को काट देता है,और इसके अभाव में जीवन खतरे में पड़ जाता है,यही ताकत सर्वश्रेष्ठ है,|

लेखक ;- अकेला साथी ....रविकांत यादव (watch my another blog also )

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