मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

चमक

दोस्तों मेरा एक छोटा प्रयाश है कहानी लिखने का .....इसका विषय चमक रखा है , दूर दराज के सफ़र में अधिकतर लोग रेलगाड़ी में सफ़र करते है , ऐसे ही सफ़र में दो यात्री मिले केवल भासा से पहचान भासा कहे या अपनत्व बात समय काटने से सुरु होकर आगे बढती गयी सायद ही अगल बगल वाले समझ पाते हो , बातो के दौर में एक ने कहा वह व्यापारी है , दुसरे ने कहा वह नौकरी की तलाश में गाव से अगले पड़ाव पर जा रहा है , बाते कहे या मोह्पास खिड़की के पास से भागते पेड़ पौधे ,हवा के झौके, दरिया , मानव ,मकान , रोड , नदिया , आकाश , जानवर खेत खलिहान और पटरियों के खड खड सायद इसी से खडकपुर का नाम पड़ा होगा ,झटके से हल्का झूलता सरीर ,के बिच , सहर , बाल बच्चे आदि की एक तरफ़ा बाते चलती रही ,किसी के मोबाइल से सायद कोई फिल्म दिल ही दिल में का गीत बज रहा था ,भरोसा व प्यार वाले मर ही जाते है ,व्यापारी ने कहा वह थोडा हल्का होने जा रहा है , थोडा समय लगेगा कृपया उसके बैग का ध्यान रखे ,कुछ देर आराम की तलाश में ग्राम वासी का पैर व्यापारी के बैग से जा टकराया उसमे कुछ ठोस होने का अहसास हुआ , न चाहते हुए भी उसने बैग को खोलकर देखा उसमे कुछ चांदी की ईटे थी , कुछ सोने के जेवर , और कुछ पैसे थे , अब ये पल ग्राम वासी के लिए भारी हो गया , उसके मन में तरह तरह के विचार चलने लगे ,वीचारो की आन्धिया चलने लगी आतंरिक पिपासा जाग उठी वह सोचने लगा यदि मई यह धन ले लू तोह मेरी सारी गरीबी दूर हो जाएगी , बच्चो को अच्छी पढ़ायी हो जाएगी , उन्हें अच्छा जीवन मिल जायेगा , कर्जदारों के क़र्ज़ भी चूका दुगा ,क्यों न मै ये बैग लेकर ट्रेन से कूद जायु , अरे अब तोह ट्रेन भी रुक गयी है ,कही ये पाप तोह नहीं है ,और ये आमिर कौन से सरीफ होते है ,गरीबो का खून चूसते है ,और कोई मुसीबत आयी भी तोह मै क्यों ज़िम्मा लू ,मै संभाल लुगा , कह दुगा मेरा स्टेशन आ गया था , और भी तरीके है निपटने के , और उसकी माली हालत भी ठीक हो जाएगी ,उसने देरी न करते हुए तुरंत बैग को कस कर पकड़ा उठा और एक झटके में बैग को वही छोड़कर रेल से ,अपनी भूख अपने पुराने गमछे के साथ व पुरानी घडी को देखते तेज़ी से अपने रास्ते को बढ़ जाता है , उसके अन्दर के सैतान ने उसे बेवकूफ कहा , परन्तु फ़िर भी उसका माथा चमक रहा था ,........... 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें